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चार
कर सकता कि धर्म के समस्त तत्त्व मैंने पा लिए हैं। ऐसा दावा करना भी नहीं चाहिए । सूर्य की समग्र किरणों को मैंने अपनी बाँहों में भर लिया है, यह कौन कह सकता है ? वेदव्यास ने कहा है:
धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायाम् । धर्म का तत्व अंधकारमय गुहा में छिपा है। इस धर्म के छिपे तत्त्व को नाना पन्थ के मनीषी अपने ज्ञानप्रदीप के प्रकाश की सहायता से युगों से ढूँढ़ते आ रहे हैं। पूज्यपाद विजय लक्ष्मण सूरीश्वर महाराज ने भी जैन धर्म के अनुसार अपने मनीषा प्रदीप द्वारा 'आत्मतत्त्व-विचार' में धर्म के कुछ तत्त्वों को ढूँढ़ उन्हें स्पष्ट कर लोगों के सामने रखा है।
धर्म-साधन का अंतिम लक्ष्य चौथे पुरुषार्थ मोक्ष की प्राप्ति है और मोक्ष-प्राप्ति के लिए कर्म-क्षय आवश्यक है, क्योंकि इसी कर्म-बंधन के फलस्वरूप आत्मा बार-बार जन्म लेकर उनका भोग भोगा करती है। कर्म-क्षय के लिए कर्म का रूप समझना आवश्यक है। इसीलिए 'आत्मतत्त्व-विचार' में धर्म के साथ ही कर्म की भी विवेचना है।
इस धर्म और कर्म का साधक कौन है ? आत्मा, शरीर जिसका पात्र अथवा आधार है। इसे सरल कर कहा जाय, तो कहेंगे कि मानव, मनुष्य, आदमी से आत्मा का संबंध है। आदमी ही धर्म तथा कर्म का साधक है। अतः 'आत्मतत्त्व-विचार' में इस आत्मा की मीमांसा भी प्राप्त है। ___ 'आत्मतत्त्व-विचार' में आत्मा, कर्म, धर्म का अन्योन्याश्रयत्व ४६ व्याख्यानों द्वारा प्रतिपादित है। एक ही विषय को एकाधिक व्याख्यानों द्वारा भी स्पष्ट किया गया है। उक्त