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________________ अपश्चिम तीर्थकर महावीर - 74 (12-13) अश्वरत्न-हस्ती रत्न- तीव्र वेगशाली, महापराक भी सवारी के काम आते हैं। (14) स्त्रीरत्न (श्रीदेवी)- काम-सुख का खजाना, चक्रवर्ती की प्रधान पटरानी, जो एक भी सन्तान को जन्म देने में समर्थ नहीं है। चक्रवर्ती के मरण-पश्चात् वियोगजन्य आर्तध्यान करती हुई मरकर छठी नरक में जाती है। इस प्रकार इन चौदह रत्नों की मूकानगरी आदि स्थानों में यथास्थान उत्पत्ति होती है। तब प्रियमित्र चक्रवर्ती विदेह-विजय के लिए निकलते हैं। सर्वप्रथम मागध तीर्थ को विजय करने के लिए प्रस्थान करते हैं। मागध तीर्थ पहुंचकर वे तेले की तपश्चर्या करते हैं। तत्पश्चात् धनुष लेकर नामांकित वाण वारह योजन दूरी पर मागध तीर्थाधिपति देव के स्थान पर फेंका। उस वाण को देखकर पहले तो मागध तीर्थाधिपति क्रुद्ध हुआ कि असमय में मरने के इच्छुक किसने यह बाण डाला है। ऐसा चिन्तन करता हुआ मागधदेव वाण उठाता है। चक्रवर्ती प्रियमित्र का नाम देखकर नतमस्तक होता है। तदनन्तर प्रियमित्र के पास आकर निवेदन करता है, मैं आपका आज्ञाकारी देव हूं। अनेक प्रकार के उपहार चक्रवर्ती को देता है। चक्रवर्ती उसे ससत्कार विदा करते हैं। चक्रवर्ती तेले का पारणा करते हैं और तीर्थ-विजय की खुशी स्वरूप वहां आठ दिन का महोत्सव करते हैं। इसके पश्चात् इसी क्रम से क्रमशः प्रभास तीर्थ, सिन्धु देवी, वैतादय-गिरि कुमार, तमिस्रा गुफा, कृतमालदेव आदि को अधीन कर पट्खण्ड साधते हैं। इसी मध्य जब वे वैताढ्य-गिरि से बाहर निकलते है तो उन्हें नव-निधियां भी प्राप्त होती हैं। वे इस प्रकार हैं(1) नसर्पनिधि- ग्राम-नगरादि के निर्माण में सहायक। (2) पायक निधि- धान्य और बीजों को उत्पन्न करने वाली। (3) सिंगल निधि- आभूषण निर्माण करने वाली। शासन निधि- बहुमूल्य रत्न प्रदान करने वाली । 5 पदम निवि-दरतुओ को पंदा करने वाली। मिति:- काल, कला और व्याकरण आदि का आन करान
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
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