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अपश्चिम तीर्थकर महावीर - 59 विशाखनंदी पुष्पकरंदक उद्यान में जायेगा या फिर मैं अन्न-जल त्याग कर मरण को प्राप्त करूंगी।
महारानी! धैर्य धारण करें। व्यवस्था में आवश्यक संशोधन करेंगे...
संशोधन आज होना चाहिए। अभी होना चाहिए। अन्यथा तुमको रानी.........नहीं मिलेगी।
क्रोध का पारा बहुत तेज है। इसे विराम देना मुश्किल है। कुछ-न-कुछ उपाय करना होगा......... क्या उपाय करूं?...........
वैसे ही पुष्पकरंदक उद्यान से नहीं निकाल सकता। तब क्या करूं? ........... जिससे कार्य भी हो........ और व्यवहार भी न बिगड़े. ......... क्योंकि विश्वभूति.... .. वह तो......... मेरे प्रति श्रद्धावनत है। राजा चिन्तन की गहराइयों में डूबे हैं। तभी उपाय घ्यान में आता है। महारानी से कहते हैं- अभी जाता हूं; विश्वभूति को उद्यान से बुलाता हूं। विशाखनंदी उद्यान में चला जायेगा।
ठीक है। रानी ने कहा। राजा-दरबार में जाकर युद्ध की भेरी बजाओ। जो आज्ञा। सेवक ने कहा।
युद्ध की भेरी बजी। नगर में कोलाहल व्याप्त हो गया। रणभेरी बज गई............ किससे युद्ध हो रहा है? अचानक यह सब कैसे...... .....? तिराहों, चौराहों, राजमार्ग पर चर्चा होने लगी।
युवराज-पुत्र विश्वभूति के कानों तक भी खबर चली गयी। तब विश्वभूति ने अपनी पत्नियों से कहा, मैं जा रहा हूं, रणभेरी बज
गयी है।
विश्वभूति लौटकर, राजा के पास जाकर– महाराजा सेना सजाकर, कहां प्रस्थान कर रहे हैं?
सामन्त पुरुषसिंह द्वारा आत्मसमर्पण कराने हेतु। अरे! वह तो मैं ही कर सकता हूं। आप रुकिये मैं जाता हूं। विश्वभूति ससेना प्रस्थान करता है।
पुरुषसिंह सामन्त! वो तो स्वयं युवराज को आता देखकर सामने जाता है। सत्कार करता है। युवराज उसे समर्पित ही देखकर