SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपश्चिम तीर्थकर महावीर - 55 फिर भी चाहिए जीवन में कोई अन्तर्वेदना को सुनने वाला। लौटती लहरों ने फिर मन में एक चषक भर दी। बस, बनाना है एक शिष्य । वह मेरा अपना होगा। सुख-दुःख का साथी होगा। मेरी सेवा-समर्चा में निमग्न रहने वाला होगा। स्वप्नलोक की मनभावन कल्पनाओं में मरीचि विहरण करने लगे। मन खोज रहा था कोई साथी। जीवन के चौराहे पर, किसी-न-किसी मोड़ पर कोई-न-कोई मिल ही जाता है। मरीचि को भी मिला एक कपिल नामक कुलपुत्र । मरीचि ने अर्हत् धर्म का उपदेश दिया। तब कपिल ने पूछा- अर्हत् प्रवचन ही सत्य है, तब तुम उसका आचरण क्यों नहीं करते? मरीचि- भाई मैं उतना कठिन आचरण करने में समर्थ नहीं। कपिल- तब क्या तुम्हारा मार्ग भी सच्चा है? मरीचि- शिष्य-मोह से आविष्ट बन कर - हां, सच्चा है। तब मैं भी त्रिदण्डी बनूंगा। यह कहकर वह कपिल त्रिदण्डी बन जाता है। मरीचि असत् मार्ग को सत् बताने के कारण एक कोटाकोटि सागरोपम प्रमाण संसार का उपार्जन कर लेता है। उस पाप की आलोचना किये बिना 84 लाख वर्ष की आयु पूर्ण कर, अनशन कर, मृत्यु को प्राप्त कर, ब्रह्मलोक देवलोक में दस सागरोपम की आयु वाला देव बन गया। कपिल ने आगे चलकर अपना सम्प्रदाय चलाया। वह सांख्यमत के नाम से प्रचलित हुआ।" ब्रह्मदेवलोक में वह मरीचि दिव्य भोगों का आनन्द लेता हुआ, वेणु-मुंदग आदि की झंकार से झंकृत बना हुआ दिव्य देवियों सहित देवलोक के सुखों का अनुभव करता है। दस सागरोपम तक दिव्य भोगों का भोग कर आयु क्षय होने पर वह देव कोल्लाक ग्राम में 80 लाख पूर्व की आयुष्य वाला कौशिक ब्राह्मण बना। यह महावीर की आत्मा का पांचवां भव था। वह ब्राह्मण विषय-वासनाओं में संलिप्त, पैसा उपार्जन करने में प्रवीण, हिंसादि पाप कर्मों में निरत रहता था। ब्राह्मण रूप में उसने बहुत-सा जीवन का समययापन किया। तदनन्तर त्रिदण्डी संन्यासी बना। अन्त में आयुष्य क्षय होने पर मृत्यु को प्राप्त कर, बहुत सारे भवों में भ्रमण कर, स्थूल नामक स्थान में पुण्यमित्र नामक ब्राह्मण बना।
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy