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अपश्चिम तीर्थंकर महावीर - 240 (क) आवश्यक चूर्णि; जिनदास; पृ. 321 (ख) आवश्यक चूर्णि, मलयगिरि; पृ. 297 प्रभु ए पंण तेने भव्य जाणी ने प्रतिबोध कर्यो। – त्रिषष्टि श्लाका पु. चा.; वही; पृ. 102 त्रिषष्टि श्लाका पु. चा.; वही; पृ. 102 (क) आवश्यक चूर्णि; जिनदास; पृ. 322 (ख) आवश्यक चूर्णि, मलयगिरि; पृ. 297-98 (ग) चउप्पन महापुरिस चरियं; पृ. 298-99 (क) त्रिषष्टि श्लाका पु. चा.; वही; पृ. 103 (ख) आवश्यक चूर्णि; जिनदास; पृ. 322 (क) आवश्यक चूर्णि; जिनदास; पृ. 322 (ख) त्रिषष्टि श्लाका, पु. चा.; वही; पृ. 104 (क) विशेषावश्यक भाष्य; 1961-68 (ख) आवश्यक हारिभद्रीय; पृ. 227-28 (ग) आवश्यक चूर्णि, मलयगिरि; पृ. 298-99 (घ) महावीर चरियं; गुणचन्द्र; 7/250 (ङ) त्रिषष्टि श्लाका पु. चा.; वही; पृ. 103-4 भगवान महावीर एक अनुशीलन; देवेन्द्र मुनि; वही; पृ. 370 छट्टेण एगया भुज्जे अदुवा अट्टमेण दसमेण । दुवालसमेण एगया भुंजे पेहमाणे समाहिअपडिन्ने । आचारांग/1/9/4/7 (क) आवश्यक चूर्णि; जिनदास; पृ. 324 (ख) होमियो महावीर; नेमीचन्दपुगलिया; एजूकेशनल प्रेस, फड़ बाजार, बीकानेर; सं. 2031; पृ. 8 त्रिषष्टि श्लाका पु. चा.; वही; पृ. 105 (क) स्थानांग; 10 (ख) प्रवचन सारोद्धार सटीक; उत्तर भाग (ग) महावीर चरियं में आचार्य गुणचन्द्र ने प्रथम परिषद् को अभावित परिपद् मानते हुए भी उस परिषद् में मानव की उपस्थिति मानी है। देखिए- महावीर चरियं 7; गात्र 4, 4; पृ. 251 त्रिषष्टि श्लाका पु. चा.; वही; पृ. 105 आवश्यक चूर्णि; जिनदास; पृ. 324
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