________________
अपश्चिम तीर्थकर महावीर - 189
आवश्यक चूर्णि; जिनदास; पृ. 298-99
तेजोलेश्या को शीतललेश्या से शमित करना रक्षा रूप धर्मकार्य था। इसी कारण करुणानिधि भगवान ने अनुकम्पा करके तेजोलेश्या का प्रतिकार करने के लिए शीतललेश्या छोड़ी लेकिन उस सम्बन्ध में श्रमविध्वंसन ग्रन्थ में ऐसा उल्लेख है कि भगवान महावीर ने छद्मरथावस्था में शीतललेश्या को प्रकट करके गोशालक की प्राण-रक्षा की थी। इसमें भगवान को जघन्य तीन और उत्कृष्ट पांच क्रियाएं लगी थीं क्योंकि पन्नवणा पद 36 में तेज समुद्घात करने से जघन्य तीन एवं उत्कृष्ट पांच क्रियाओं का लगना लिखा है। शीतललेश्या भी तेजोलेश्या ही है अतः उसमें भी समुद्घात होता है। इसलिए भगवान ने शीतललेश्या प्रकट करके जो गोशालक की रक्षा की उसमें उन्हें जघन्य तीन और उत्कृष्ट पांच क्रियाएं लगीं।
लेकिन यह कथन आगमविरुद्ध है क्योंकि आगम में तेजसमुद्घात करने से जघन्य तीन और उत्कृष्ट पांच क्रियाएं लगने का कहा है। परन्तु उष्ण तेजोलेश्या प्रकट करने में तेज-समुद्घात होता है, शीतललेश्या के प्रकट करने में नहीं। भगवती सूत्र, शतक पन्द्रह में उष्ण तेजोलेश्या प्रकट करने में समुद्घात बताया है, शीतललेश्या में नहीं। अतः भगवान को शीतललेश्या प्रकट करने में अन्यान्य क्रियाएं लगने की बात निरर्थक है।
उष्ण तेजोलेश्या का प्रयोग करने में उत्कृष्ट पांच क्रियाएं लगती हैं। कायिकी', अधिकरणिकी', प्राद्वेषिकी', परितापनिकी और प्राणातिपातिकी। उक्त पांचों क्रियाएं हिंसा के साथ सम्बन्ध होने से लगती है, रक्षा करने वाले को नहीं। स्थानांग सूत्र, द्वितीय स्थान में इन क्रियाओं का स्वरूप इस प्रकार बतलाया है कि जो क्रिया शरीर से की जाती है, वह कायिकी क्रिया है। वह दो तरह की है- 1. अनुपरत कायक्रिया और 2. दुष्प्रयुक्त कायक्रिया। जो क्रिया सावध कार्य से अनिवृत्त मिथ्यादृष्टि एवं अविरत सम्यकदृष्टि पुरुष के शरीर से उत्पन्न होकर कर्मबन्ध का कारण बनती है, वह अनुपरत कायक्रिया कहलाती है। और प्रमत्त संयम पुरुष अपने शरीर से इन्द्रियों को इष्ट या अनिष्ट लगने वाली वस्तु की प्राप्ति और परिहार के लिए आर्तध्यानवश जो क्रिया करता है वह दुष्प्रयुक्त कायक्रिया कहलाती है। अथवा मोक्ष-मार्ग के प्रति दुर्व्यवस्थित संयत पुरुष अशुभ मानसिक संकल्पपूर्वक शरीर से जो क्रिया करता है, वह भी दुष्प्रयुक्त कायक्रिया कहलाती है।
अधिकरणिकी क्रिया दो तरह की है- संयोजना अधिकरणिकी और निवर्तन अधिकरणिकी। तलवार में उसकी मूठ को जोड़ने की क्रिया को