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________________ 186 अपश्चिम तीर्थकर महावीर पारणा करके, बेले के पारणे में एक मुट्ठी उड़द और एक अंजलि जल ग्रहण करने लगा और भुजाओं को सूर्य की तरफ ऊँची करके आतापना लेने लगा। इस प्रकार छह मासपर्यन्त करने पर उसे तेजोलेश्या की लब्धि प्राप्त हो गयी । अब गोशालक के मन में चंचलता हो गयी कि जो तेजोलेश्या प्राप्त की है उसका प्रयोग करना चाहिए । उसका प्रयोग करने के लिए वह एक कुएं के पास गया। वहां एक दासी घड़े में पानी भरकर ले जा रही थी। उसने उस दासी के घड़े पर एक कंकर मारा । दासी का घड़ा फूटा तब वह गोशालक को गालियां देने लगी । गोशालक को क्रोध आया और उस पर तेजोलेश्या छोड़ी। वह दासी वहीं जलकर भस्म हो गयी। अब उसे कौतुक उत्पन्न हो गया। लोगों ने भी उसकी तेजोलेश्या का प्रभाव देखा तो लोग भी उसके साथ-साथ विहार करने लगे । विहार करते हुए एक बार भगवान पार्श्वनाथ के छह शिष्यों की, जो चारित्र का परित्याग कर अष्टांग निमित्त के पंडित हो गये, गोशालाक से मुलाकात हुई । उन सबकी गोशालक के साथ मैत्री हो गयी तब गोशालक को अहंकार हुआ कि मैं तेजोलेश्या का जानकार और ये छह मेरे शिष्य अष्टांग निमित्त के जानकार हैं। अहो ! हम सबको कितना ज्ञान है। वास्तव में मैं जिनेश्वर हूं। इस प्रकार मति वाला गोशालक अजिन भी स्वयं को जिनेश्वर कहता हुआ भूमण्डल पर विचरण करने लगा । इधर भगवान महावीर सिद्धार्थपुर से विहार करके वैशाली नगर पधारे। नगर के बाहर भगवान ध्यानस्थ मुद्रा में लीन हो गये । अनेक बालक बाल-क्रीड़ा करते हुए वहां पर आये और प्रभु को पिशाच समझ कर यातना देने लगे। अचानक वहां पर प्रभु के पिता का मित्र शंख गणराज अपने विशाल राजकीय परिवार के साथ आया। उसने देखा कि बालक प्रभु को यातना दे रहे हैं। उन बालकों को उसने हटाया और भगवान को वन्दन, नमस्कार कर लौट गया। वहां से विहार कर प्रभु वाणिज्यग्राम पधारे। उस मार्ग में मंडिकीका (गंडकी) नामक एक नदी पड़ती थी । उस नदी को पार करने के लिए प्रभु नौका में विराजे । नाविक ने नदी पार कराई और भयंकर तप्त बालुका I वाले
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
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