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अपश्चिम तीर्थंकर महावीर 174
सप्तदश अध्याय
साधनाकाल का सप्तम वर्ष
भद्रिका से विहार करके प्रभु मगध देश में पधारे। वह मगध जनपद उस समय का विख्यात जनपद था । शक्तिशाली सम्राट श्रेणिक वहां का अधिपति था। वहां के लोग भक्तिभाव परिपूर्ण, सरल मना, दानशील प्रवृत्ति के धनी थे। उसी मगध भूमि में प्रभु गोशालक सहित निरन्तर विचरण कर रहे हैं लेकिन वहां कोई भीषण उपसर्ग या परीषह प्रभु को झेलना नहीं पड़ा। इस प्रकार सुख-शांतिपूर्वक आठ माह तक विचरण करने के पश्चात् वे प्रभु आलभिका नगरी पधारे। वहां चातुर्मासिक तप के प्रत्याख्यान कर प्रभु ने सप्तम चातुर्मास करने का निश्चय किया। चार माह प्रभु विशिष्ट उपसर्गरहित साधना में लीन रहे । चार मास पूर्ण होने पर नगरी के बाहर पारणा किया' ।
संदर्भः साधनाकाल का सप्तम वर्ष, अध्याय 17
1. (क) आवश्यक चूर्णि; जिनदास; पृ. 293
(ख) आवश्यक चूर्णि, मलयगिरि;
पृ. 283