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अपश्चिम तीर्थकर महावीर - 23 नामकरण संस्कार किया। सभी को प्रिय लगने वाली होने से उसका नाम प्रियदर्शना रखा गया। पांच धायों द्वारा प्रियदर्शना का पालन-पोषण होने लगा। दादा, दादी, बड़े पिताजी, बड़ी माताजी, एवं माता-पिता के निश्छल प्यार से प्रियदर्शना राजघराने में पल्लवित-पुष्पित होने लगी।
शनैः-शनैः प्रियदर्शना युवा-वय को सम्प्राप्त हुई। अंग-प्रत्यंग से यौवन प्रस्फुटित होने लगा। तब परिणय वेला जानकर उसका विवाह सुदर्शना के पुत्र राजकुमार जमालि के साथ कर दिया गया।
एक बार राजा सिद्धार्थ और महारानी त्रिशला राजभवन में बैठे थे। त्रिशला ने सिद्धार्थ से कहा- राजन! हमारे गृहस्थ के दायित्व पूर्ण हो गये हैं। यहां तक कि हमने पौत्री प्रियदर्शना का विवाह भी कर दिया है। अव हमारी वृद्धावय है। इसमें हमें धर्म-आराधना करते हुए यह शेष जीवन व्यतीत करना चाहिए।
सिद्धार्थ ने समर्थन करते हुए कहा- हां, महारानी! तुम ठीक कह रही हो। धर्म-जागरणा करते हुए हम मानव जीवन को सफल बनायेंगे।
महाराजा और महारानी धर्म-ध्यान में निमग्न बन जाते हैं। दोनों का अन्तिम समय समीप आता है, तब काल का अवसर आया जानकर दोनों संलेखणा संथारा करके औदारिक शरीर त्याग कर वारहवें देवलोक में देवरूप में उत्पन्न होते हैं। वहां से च्यवकर महाविदेह में जन्म लेकर सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होंगे।'
संदर्भः परिणय की परिक्रमा अध्याय 9
नन्यावर्त का चित्र। राजा सिद्धार्थ के तीन नाम थे- सिद्धार्थ, श्रेयांस, यशस्वी, आचारांग, द्वितीय श्रुत. स्कन्ध, दही: अध्ययन 15 महारानी विशाला के तीन नाम थे-त्रिशला. प्रियकारिणी विदेहदिन्ना। यशोदा का कौण्डिन्य गोत्र बतलाया है, आचाराग, द्वितीय श्रुत कना, दही, अध्ययन 15 से गुर्ग से मूलागे. जे मूलहा से गुर्ग, अचारांग सूत्र मालाक अति प्रकार देवन्द लालमाई, सन् :916. प्रभा श्रुत साना
रसायन प्रम देशक {...........: S KC ! ...1: Pt.
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