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परिणय की परिक्रमा - नवम अध्याय
क्षत्रियकुण्ड का वह नन्द्यावर्त प्रासाद', जहां कुमार वर्धमान ने जन्म लिया, नई-नवेली वधू-सा सज रहा है। पूरा का पूरा नगर नवोढा का रूप धारण कर रहा है। कहीं नृत्य, कहीं गायन, कहीं वादन आदि मनोरंजनपूर्ण कार्यक्रमों से नगर में उत्सव-सा माहौल बन गया है। सभी को राजकुमार वर्धमान का विवाह देखने की उत्सुकता है। जन-धारणा है कि विरक्त रहने वाले कुमार विवाह कैसे करेंगे?
___ आखिर वह दिन आ ही गया जिसका सबको इन्तजार था। कुमार वर्धमान यशोदा के साथ विवाह मण्डप में बैठे हैं। आंखों से दृश्य देखने के पश्चात् भी जनता को विश्वास नहीं हो रहा है कि यह विवाह है या कोई स्वप्न?
___राजा सिद्धार्थ स्वयं साश्चर्य चिन्तन कर रहे हैं, क्या एकाकी रहने वाला कुमार आज. .... समरवीर......... की लड़की......... यशोदा के साथ विवाह मण्डप में बैठा है?
बन्धन! वह तो बन्धन ही है। महारानी प्रियकारिणी का प्रयास सफल रहा। अभी सात फेरों से कुमार परिणय सूत्र में बंध जायेगा, फिर क्या? यशोदा' स्वयं ही अपने लुभावने प्रयासों से कुमार के एकाकीपन को दूर करेगी। राजा सिद्धार्थ चिंतन में निमग्न हैं, उधर विवाह का कार्यक्रम सम्पन्न हो रहा है। पंडित शब्दोच्चारण से ध्यानाकृष्ट कर रहा है। भांवरों का समय आ गया है। दोनों ने सप्त फेरे लिए। परिणय-बन्धन . का लौकिक क्रम यथासमय पूर्ण हुआ।
यशोदा वर्धमान जैसे वीर की अर्धांगिनी बनकर अपने आपको परम गौरवशाली महसूस कर रही थी। उन्नत तेजस्वी ललाट, कृष्ण-सचिक्कण बाल, जिनकी लटाएं कपोलों पर भ्रमरवत मधुपान पार रही थीं। कपोलों पर छलकती अरुणिमा दाडिम के बीजवत शानायमान हो रही थी। सुदीर्घ भौंहें, विशाल नेत्र, प्रलम्ब कर्ण, उन्नत नातिका और रक्तिम अधर अप्सराओं के रूप-लावण्य को पराजित करने में परिपूर्ण सक्षम थे। जब यशोदा अपने अधर सम्पुट को खोलती तब कुन्द पुष्प के समान चमकती श्वेत दन्त-पंक्ति मानो मोती बरसाती