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________________ भी समाधान किया । इन्द्रभूति भगवान की ज्ञान-गरिमा से अत्यन्त प्रभावित हो उठे। उन्होंने भगवान महावीर के चरणों की अभिवन्दना की और उनके शिष्यत्व को स्वीकार किया । केवल इन्द्रभूति ने ही नहीं, उनके दोनों भाइयों ने भी भगवान महावीर का शिष्यत्व ग्रहण करके अपने जीवन को सार्थक बनाया । गणधरों में इन्द्रभूति का प्रधान स्थान था । इन्द्रभूति के पश्चात् दस और प्रकांड वैदिक विद्वानों ने भगवान महावीर के दिव्यज्ञान से प्रभावित होकर उनसे दीक्षा ग्रहण की। ये ग्यारह विद्वान् गणधर के नाम से विख्यात हैं। ये ही भगवान महावीर के वीरसंघ के स्तम्भ भी थे । इनके नाम इस प्रकार हैं - १. इन्द्रभूति, २ . अग्निभूति, ३. वायुभूति, ४. शुचिदत्त, ५. सुधर्म, ६. मोइव्य ७. मौर्यपुत्र, ८. श्रकम्भन, ६. अचल, १०. मेदार्य और ११. प्रयास | भगवान महावीर ने बिहार प्रदेश में चारों ओर अपनी विजय पताका फहरा दी । तत्कालीन बिहार के बड़े-बड़े राजाओं ने भगवान महावीर मे दीक्षा ग्रहण की। भगवान महावीर जहांजहां गए, उन्होंने अपने अमृतमयी उपदेश दिए। कहा जाता है कि भगवान महावीर के विहारों के ही कारण बिहार बिहार' प्रदेश के नाम से विख्यात हुआ । बिहार के पश्चात् भगवान ने सारे भारत की यात्रा की । ज्ञान की मशाल लेकर वह ईरान, फारस आदि देशों में भी गए । भारत की भांति ही ईरान और फारस देशों में भी लक्ष- लक्ष मनुष्यों ने भगवान महावीर से दीक्षा ग्रहण करके अपने मानव जीवन को सार्थक ६०
SR No.010149
Book TitleAntim Tirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShakun Prakashan Delhi
PublisherShakun Prakashan Delhi
Publication Year1972
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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