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अज्ञान का तम ढला, सच्चे ज्ञान की किरण फूटी
साढ़े बारह वर्षों तक घोर साधना करने के पश्चात् बिहार प्रदेशान्तर्गत जम्भ्रिक गांव के समीप ऋजुकुला नदी के तट पर, साल वृक्ष की छाया में भगवान महावीर के हृदय में दिव्य-ज्ञान का सूर्य उदय हुआ। कितना पावन था वह दिन, कितनी मंगलमय थी वह घड़ी। मानव-समाज के इतिहास में वह दिन और वह घड़ी एक स्मरणीय कथा बनकर सदा अमर रहेगी। क्योंकि जिस ज्ञान-सुधा को पीकर आज घरती के कोटि-कोटि मनुष्य संतृप्त हो रहे हैं, वह भगवान महावीर के हृदय में उसी समय बहा था। आज भी जब उस दिन और घड़ो के सम्बन्ध में सोचते हैं, तो हृदय अपार आनन्द, उल्लास और हर्ष से भर जाता है।
भगवान महावीर को वास्तविक पंथ प्राप्त हो गया, जिसे खोजने के लिए वह अब तक भगीरथ प्रयत्न में संलग्न थे। वह पूर्ण रूप से इस बात के ज्ञाता बन गये-जीवन क्या है, जगत
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