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________________ भगवान महावीर सबकी डबडबायी आंखों और तड़पते हुए हृदयों से मुंह मोड़कर चलने के लिए उद्यत हो उठे। जैनशास्त्रों में उनकी इस स्थिति का चित्रण इस प्रकार किया गया है-"जिस प्रकार सूर्य के उदित होने के पश्चात् आग तापने का मोह समाप्त हो जाता है, उसी प्रकार भगवान महावीर को अपनी सम्पत्ति का मोह समाप्त हो गया।" भगवान महावीर मोह-बन्धनों को तोड़कर चन्द्रप्रभा पालकी पर जा बैठे। पालकी राजपथ से होकर आगे की ओर बढ़ चली। राजपथ के दोनों ओर लोग हाथ बांधे हुए खड़े थे, सबकी आंखें भरी थीं। पर चन्द्रप्रभा पालकी आगे बढ़ती ही गई, और बढ़ती ही गई। पालकी राजपथ से होती हुई नागुखण्ड वन-उद्यान की ओर बढ़ी। पालकी के वाहकों को ऐसा ही निर्देश था। उद्यान में पहुंचकर वाहक रुक गए। उन्होंने महिमामय अशोक-वृक्ष के नीचे पालकी कंधे से उतारकर रख दी। भगवान महावीर पालकी से नीचे उतरे । अशोक-वृक्ष के नीचे मणियों से जटित स्फटिक शिला थी। पर उन्होंने उसकी ओर देखा तक नहीं। वह कितनी ही बार उस स्फटिक शिला पर बैठकर उसे गौरवान्वित कर चुके थे। पर आज तो वह राजकुमार नहीं, पूर्ण विरक्त थे । वह उससे दूर खड़े हो गए और अपने शरीर के उन आभूषणों और वस्त्रों को उतारने लगे, जो उस समय उनके शरीर पर थे। सबसे पहले उन्होंने एक-एक करके अपने आभूषण उतार दिये, फिर वस्त्र भी । इस प्रकार वस्त्रों को उतारकर वह पूरे शिशु-रूप हो गए। कितना हृदय-द्रावक रहा होगा वह दृश्य । कुछ क्षणों में ही लोक-कल्याण के लिए वह
SR No.010149
Book TitleAntim Tirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShakun Prakashan Delhi
PublisherShakun Prakashan Delhi
Publication Year1972
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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