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________________ ठीक समय पर वर्षा होने लगी। नदियों, सरोवरों और कुओं का नीर और मधुर हो गया। खेतों में अच्छी फसलें उगने लगीं। लोग धन-धान्य से पूर्ण हो गए। कंठ-कंठ से हर्ष फूटने लगा । धर्म - चर्चाओं के प्रति लोगों की रुचि बढ़ गई। संयम, सदाचार, अहिंसा, सत्य और दया-प्रेम के प्रति लोगों का झुकाव हो गया। ऐसा लगने लगा, मानो धरती के लोग अपनी सम्पूर्ण कलुषता त्यागकर किसी प्रसन्नता में स्वर्ग को छू लेना चाहते हैं । भगवान महावीर ने जिन्हें अपनी जननी और जनक के रूप में वरण किया था, वह माता देवी के सदृश थीं, पिता देवतुल्य थे । उनकी माता का नाम त्रिशलादेवी और पिता का नाम सिद्धार्थ था । त्रिशलादेवी तत्कालीन महाराणा और गणराज्य अधिपति चेटक की बहन थीं। वह ऊंचे विचारों की महत्त्वाकांक्षिणी महिला थीं। सिद्धार्थ बहुत बड़े विद्वान् नृपति थे । वह न्यायप्रिय, उदार और संयमी थे । धर्म की ज्योति से उनका हृदय सदा आलोकित रहा करता था । वह प्रजा का पुत्रवत् पालन और संरक्षण करते थे । जैन शास्त्रों में महाराज सिद्धार्थ का उल्लेख 'सिद्धत्ये खत्तिये' और 'सिद्धत्ये राया' के नाम से हुआ है । भगवान महावीर जब गर्भ में अवतरित हुए, उसी समय उनकी पूज्य माता के मुखमण्डल पर दिव्य आभा विचरण करने लगी थी। महाज्ञानी गर्भस्थ भगवान महावीर के प्रभाव के कारण उनके हृदय में दिव्य-ज्ञान का अजस्र स्रोत प्रवाहित हुआ करता था। उस समय वह ज्ञान और धर्म - गोष्ठियों में भाग लेतीं और ४४
SR No.010149
Book TitleAntim Tirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShakun Prakashan Delhi
PublisherShakun Prakashan Delhi
Publication Year1972
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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