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की तैय्यारी करना शुरू कर देगे, ऐसी अटल श्रद्धा इस तत्त्वज्ञान के उपदेशको के हृदय मे है ।
फिर भी इस तत्त्वज्ञान का यदि लाभ उठाना हो तथा उसे ठीक तरह से समझना हो, तो एक छोटी-सी शर्त का पालन हमे अवश्य करना होगा । यह शर्त 'तटस्थता भाव' कहा जाय उसे तटस्थवृत्ति से पूरा समझने की हमे कोशिश करनी चाहिये । उसे ग्राधे रास्ते पर या दो कदम चलने पर ही छोड़ न देना चाहिये । श्रापसे यही उम्मीद रखते हुए अब हम ग्रागे चर्चा करेंगे।
अपनाने की है । जो कुछ भी
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