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विदा
'वाच्य और वाचक' की यह सत्सगी मुलाकात अपने सिरे पर आ पहुँची है । 'नमस्ते, पधारियेगा' आदि मंगल - शब्दध्वनि के द्वारा हम अलग हो उससे पहले नेत्रो को 'दो मिनट ' का विराम देकर हम इष्ट मंत्र का ध्यान कर ले -
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दो मिनट का मौन पूर्ण करके अब हम चिन्तन करने योग्य दो उत्कृष्ट भावो को अपने हृदय में धारण करे:
( १ )
खामि सव्वजीवे, सव्वे जीवा खमतु मे, मित्ती मे सव्वभूएसु बेर मज्भ न करणइ । ( २ ) शिवमस्तु सर्वजगत. परहितनिरता भवन्तु भूतगरणा, दोषा प्रयान्तु नाग, सर्वत्र सुखी भवतु लोक. । अच्छा तो फिर, नमस्ते -