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और आगे बढाते हैं। ऊपर जो पांच शर्तें बताई गई हैं उन्हे नीचे से ऊपर के क्रम मे लेते हुए शुद्ध हेतु या अशुद्ध न हो ऐसा हेतु, तज्ज्ञ पुरुष से प्राप्त विधि, दृढ कार्यक्षमता, पूर्ण एकाग्रता, और बुद्धियुक्त श्रद्धा- इन पांचो वस्तुनो का ग्रामवन लेकर यदि कोई भी मनुष्य मनसाधना करे तो उसे सिद्धि प्राप्त होती है - ऐना शास्त्र का वचन है ।
परन्तु ये पाँचो चीजे एकत्रित होने मात्र से मत्रमिद्धि फलदायक हो जाती है, ऐसा नही मान लेना चाहिए । यहाँ मंत्र की पसंदगी का एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण प्रश्न उपस्थित होता है ।
हमने पिछले पृष्ठो मे देखा है कि जो भौतिक जीवनमार्ग हमे आध्यात्मिक प्रगति की सीढी तक न ले जाय वह मच्चा जीवन मार्ग ही नही है । उससे सच्चे सुख की प्राप्ति नही होती, क्योकि ऐसे सुखो से पुन दूसरे अनेक छोटे वडे दुखो की उत्पत्ति होती है ।
इन प्रकार से, जो मत्र स्वयं ही मासारिक सुखप्राप्ति को लक्ष्य मे रख कर रचा गया हो, उस मंत्र की सिद्धि यासिरकार दुखदायक ही होती हे । 'कागविद्या' (कर्णपिशाचिनी विद्या) के उपासको और माधको की कैसी दशा होती है ? मैली विद्या ( काला जादू) के श्राराधको की कैसी हालत होती है ? यह सब देखे तो उपर्युक्त कथा अच्छी तरह समझ में आएगा ।
एक श्रीर उदाहरण लेते है । एक मत्र हे जिसे ' वशीकरण' कहते है | यह एक वडा ग्राकर्षक मत्र है । ऐहिक सुख के अभिलापी, विशेपत किसी खास स्त्री को पाने की कामना