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३१२ अथवा बडी कहा जा सकता है। उदाहरणार्थ --~-'वेर, नीबू, नारगी, नारियल, ओर तरबूज,-इन पाँचो फलो को एक ही मेज पर पास पास रख दीजिये। बेर की तुलना मे नीबू वडा मालूम होगा परन्तु नारगी से तुलना करने पर वही छोटा बन जाएगा। इस क्रम के अनुसार प्रत्येक फल को ग्रासानी से छोटा और बडा कहा जा सकता है ।
प्रश्न-जैन धर्म को हिन्दू धर्म की एक शाखा माना नाता है । क्या यह बात सच है ? यदि सच नहीं है तो इसका क्या सबूत है ?
उत्तर--नहीं, यह बात सच नही हैं । एक पिता के पाँच पुत्र हो तो उन पाँच मे से किसी भी एक पुत्र के लिये वह कहेगा कि 'यह मेरा पुत्र है।" दूसरे के पुत्र के लिए वह ऐसा नहीं कह सकेगा । एक पेड मे अनेक शाखाएँ होती है । ये सब शाखाएँ उस पेड की अगभूत होने के कारण कोई ऐसा नही कह सकता कि 'यह शाखा इस पेड की नहीं है।' यदि जैनतत्त्वज्ञान हिन्दू तत्त्वज्ञान का एक अग ही होता तो हिन्दू तत्त्ववेत्ता ऐसा कहते कि 'यह हमारा एक अग है।' वे लोग ऐसा नही कहते । इतना ही नहीं, वे लोग जैन तत्त्वज्ञान को 'झूठा' कहते है। जब "झूठा' कहा जाता है तव भिन्नता उपस्थित होती ही है।
वाहर की दुनिया मे 'जैन दर्शन हिन्दू-धर्म की एक शाखा है' इस प्रकार की जो मान्यता है, वह परिस्थिति के अज्ञान से उद्भूत है। यह मान्यता बिल्कुल झूठी है । इस बात को यदि हम शुद्ध तर्क द्वारा जाचेगे तो ज्ञात होगा कि जैन दर्शन एक पूर्णत. मौलिक एव स्वतन्त्र तत्त्वज्ञान है ।