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३८० मानता । यह ससार भी एक वास्तविकता Reality है। केवल इसके स्वरूपो को सावधानी से ध्यान में रखकर यदि मनुष्य अपना जीवनपथ निर्धारित करे तो वह उस सुख का भोक्ता अवश्य बन सकता है जिसे आन्तरिक सुख माना गया है। आत्मा का विकास करने मे यह ससार या ससार के झझट कोई रोडे नही अटकाते । जैन शास्त्रकार ऐसा नही कहते कि समार मे रह कर आत्मा का जरा भी विकास नही हो सकता। उसको अन्तिम मुक्ति के लिये उन्होने जिस सर्वविरति धर्म की आवश्यकता को अनिवार्य माना है उसकी पीठिका का निर्माण देशविरति धर्म की आराधना से ही हो सकता है।
जैन तत्त्वज्ञो ने इस बात की यथार्थता को जान कर आत्मा के विकास मे अनुकूलता प्राप्त करने की दृष्टि से गृहस्थधर्म कासच्चे जीवनमार्ग का अद्भुत उत्कर्प-साधन करने में सहायक मार्ग-का बहुत ही वारोकी से प्रतिपादन किया है।
भौतिक तथा आध्यात्मिक क्षेत्र अपने हिंसा-अहिंमा के साथ कार्यकारण भाव की दृष्टि से भले ही भिन्न माने जाते हो, फिर भी आध्यात्मिक ध्येय, उसकी सिद्धि की अनुकूलता आदि समग्र दृष्टि से विचार करने पर ऐसा कोई एकान्त भेद नही हो सकता । बडे नगरो में एक ही नाम वाले किसी किसी बडे लम्वे मार्ग को उत्तर और दक्षिण-यो दो विभागो के नाम से भी पहचाना जाता है। उदाहरणत बम्बई मे लेमिग्टन रोड़ बहुत लम्बा है, उसे दो पोस्टल विभागो मे बाटा गया है'लेमिंग्टन रोड-नॉर्थ' और 'लेमिग्टन रोड-साउथ' । उसी तरह जहा तक जीवन के तथा जीव के विकास का तअल्लुक है, हम भौतिक क्षेत्र को 'मुक्तिमार्ग-दक्षिण' और आध्यात्मिक क्षेत्र