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. ३७८ बीज भी इसी मे है । रूप और अमेरिका अपनी भौतिक वैज्ञानिक सिद्धियो का प्रदर्शन करके एक दूसरे को भयभीत कर सकते है परन्तु इसमे से जो प्रकट होगा वह विस्फोट ही होगा, सुख और शाति नहीं। ___ हम अपनी मूल छोटी सी बात पर वापस आते है। यदि मनुष्य अहिसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह-इन पाँचो आचारो का पालन करने का प्रयत्न करना निश्चित करके अपने जीवन की व्यवस्था करे और कार्य करे तो वह अपना हित तो करेगा ही। उसके उपरात दुनिया के हित मे भी वडा योग दे सकेगा । यहाँ हमने 'प्राचारो का पालन करने का प्रयत्न करने की बात ही कही है, पालन करने की बात नही की। इसको ध्यान मे रख कर प्रारभ अवश्य करना । यदि पालन हो सके तो खुद तो तर ही जाएँगे, सुखी हो जाएंगे, साथ ही साथ जगत् के कल्याणरथ को भी गति दे सकेगे।
इस भौतिक जगत् मे, केवल आध्यात्मिक हेतु को लक्ष्य मे रख कर ही जीवन का ध्येय निश्चित करना चाहिए, परन्तु पूर्णतया इस तरह बरतना सबके लिये सभव नही है, क्योकि इसमे तो तुरन्त ही सर्व त्याग की बात आ खडी होती है। भौतिक सुख-सामग्री से मुंह फिरा लेना सबके लिए सभव नही है । जिनके लिए सभव है उन्हे तो इस दिशा मे कदम बढाने मे एक क्षण का भी विलम्ब न करना चाहिए । परन्तु हम जानते है कि इसके लिए भी हममे विशिष्ट प्रकार की योग्यता होनी चाहिए। यदि वह होती तो फिर क्या चाहिए था ? वह नही है इसी से तो सारा बखेडा है । । जैन शास्त्रकार भी यह बात समझते है । उनका स्याद्वाद