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हमे बहुत सहायता दे सकता है । इस शब्द का आत्मा जो 'स्यात्' है, वह हमारे जीवन के, हमारी शक्ति के एव हमारी योग्यता - योग्यता की सीमा के सभी पहलुओ का भान कराता है, और हमे क्रमश ग्रागे वढने का मार्ग दिखाता है । यह श'क्त 'स्यादवाद' मे ही है ।
जीवन मे जब दु.ख आ पडे तव उसमे घबरा कर रोने नही लगना चाहिए | सर्व प्रथम तो हमे इस बात की जाँच करनी चाहिए कि जीवन मे इस दुख के सामने हमारे पास अन्य सुख कितने पडे है । इससे हमे प्राये हुए दुख मे एक प्रवल ग्राश्वासन ग्रवश्य मिलेगा । उसके वाद हमे अपनी विवेक बुद्धि को यह जानने के लिए उपयोग मे लेना चाहिए कि वह दुख क्या है, उसका स्वरूप कैसा है, उसका कारण क्या है, और उसको दूर करने का उपाय क्या है ? दु.ख के सामने के सुखो का विचार हमारे मन को शान्त र सुव्यवस्थित करेगा और इस तरह शान्त वने हुए चित्त से अपनी विवेक बुद्धि से काम लेकर यदि हम विचार करने लगेगे तो होगा कि आये हुए या माने हुए उस दुख की छाया दूर की जा सकती है। दुग्व के पीछे सुख रहा ही हुआ है । इस प्रकार विचार करने से हम दुख के कारणो को ग्रवश्य जान सकेगे । जानने के बाद उन्हें दूर करने का पुरुषार्थं हम उत्साहपूर्वक कर सकेगे । 'स्यादवाद' के द्वारा हमे यह सब समझने और विचार करने का मार्ग अवश्य प्राप्त होगा ।
हमे स्पष्ट प्रतोत
इसी प्रकार जब जीवन मे अतिशय सुख या पड़े तब 'यह सुख क्या है, कहाँ से आया, कैसे प्राया, उसका कारण क्या हैं, इसकी कालावधि कितनी रहेगी, उसके बीच अन्य कोई