________________
३४६
गुरणस्थानक को 'ज्ञानसदन' कहना उचित ही होगा । (१४) प्रयोगकेवली गुरणस्थानक -
जव सयोगकेवली वीतराग परमात्मा ससारकाल पूर्ण होने पर तेरहवे गुणस्थानक के अन्त मे अपने शरीरादि के व्यापारो को समेट लेते है, तब वे प्रयोगी केवली बनते है । यहाँ पर तुरन्त ही सर्व कर्म नष्ट हो जाने से और शरीर छूट जाने से तुरन्त ही यह परम आत्मा अपनी आखिरी मजिल पूर्ण करके मुक्त बन कर ऊपर लोक के अन्त भाग पर पहुँच जाते है । मिथ्यात्व दशा के प्रथम गुणस्थानक से प्रारंभ कर आत्मा का जो विकासक्रम चलता है वह चौदहवे गुणस्थानक मे पूर्णता प्राप्त करके चरम विराम पाता है, सिद्ध अवस्था के प्रतिम स्टेशन पर पहुँचा देता है ।
1
इस अन्तिम एव सर्वोच्च गुणस्थानक को यदि हम 'सिद्धसदन' नाम दे तो अनुचित न होगा ।
इस सिद्धत्व को प्राप्त करने के आत्मा के पुरुषार्थ का जवरदस्त वेगवान् समारोह - एक दिव्य नाटक - सातवे गुणस्थानक से शुरू होता है । समग्र कर्मचक्र मे प्रधान सेनानी के समान मोहनीय कर्म के विरुद्ध वहाँ विराट युद्ध छिड जाता है । इस अभूतपूर्व सग्राम मे अकेला जूता हुआ साधक एक महावीर नायक ( A gleat He10 ) का जो ग्रद्भुत पार्ट प्रदा करता है उसका विवरण हमे आश्चर्य चकित करने वाला, हमारे पुरुषार्थ को वेग देने वाला तथा इस दिव्य नाटक के नायक ( Hero) का स्थान लेने की पवित्र प्रेरणा देने वाला है । हमे ऐसा पूर्व अवसर कब मिलेगा ?
फ