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'मै देखता हूँ' 'मै बोलता हूँ,' 'मैं सुनता हूं, 'मै साँस लेता हूँ, 'मै जलता हूँ' 'मै चलता हूँ' आदि वाक्य वोले जाते है; इनमे जो 'मैं' आता है वह कौन है ?
जीभ ? आँख ? कान ? नाक ? हाथ पैर ? त्वचा ?
आप कहेगे, "नही ये सव तो शरीर के अवयव है। ये सव मिल कर जो सारा शरीर बना है सो 'मै' । __ अब यदि हम शरीर को 'मै' याने तो फिर मृत शरीर मे से 'मैं' की आवाज क्यो नही पाती।
आप इसका उत्तर तुरन्त देगे कि "मृत शरीर मे जीव नही है, इसलिए कौन जवाव दे ?"
इस उत्तर का अर्थ यह हुआ कि 'मैं' नामका जो जीव था वह शरीर मे से चला गया तव शरीर मे 'मै' जैसा कुछ नही रहा, परन्तु जब तक यह जीव शरीर मे था तब तक समस्त शरीर ही नही बल्कि शरीर के अगोपांगो के लिए भी 'मै' शब्द का प्रयोग करता था। ___ यह जीव 'मैं' के अतिरिक्त 'मेरा' शब्द का भी प्रयोग करता था । मेरा शरीर मेरे हाथ, मेरी आँखे, मेरी नाक, मेरे कान, आदि गब्दो का वह जब प्रयोग करता या, तब उसके द्वारा वह एक दूसरी जानकारी भी हमे देता था कि, "जिसे मै 'मेरा' कहता हूँ वह 'मैं' नहीं।" ___ 'मेरा घर', 'मेरे वस्र' आदि शब्दो का जब हम प्रयोग करते हैं, तब यह बात तो आसानी से समझ मे आती है कि ये सब वस्तुएँ मेरी होते हुए भी मुझ से भिन्न है। इसी प्रकार शरीर मे रहा हुआ 'मैं' जब 'मेरा शरीर' आदि शब्दो का प्रयोग करता है, तब वोलने वाला 'मैं' और उसके द्वारा