________________
२६६
हो, रूपी अरूपी (साकार ओर निराकार) सूक्ष्म ओर स्थूल श्रादि गर्वकाल के सर्व पदार्थों का सर्वदर्शी तथा सम्पूर्ण ज्ञान जव प्राप्त होता है तब उसे केवलज्ञान कहते है । यह पूर्ण-पूर्ण ज्ञान है, और जिन्हे इनकी प्राप्ति होती है उन्हे 'सर्वज' अथवा 'केवली' कहते है।
केवलजान को अंग्रेजी मे 'omniscience' कहते है। जिन्हे यह जान प्राप्त हुआ हो उन्हे अग्रेजी मे 'omnisclent' कहते है । आत्मा का पूर्ण ज्ञान-रूपी जो 'स्व-स्वरूप' है, वह इसमे सपूर्णतया प्रकट होता है। यह सिर्फ 'पात्मज्ञान' नही है, वरिक समन वह्माड तथा उसकी समस्त रचनायो को अपने मे समाने वाला पूर्ण पूर्ण ज्ञान है ।
इन पांच में से प्रथम दो ज्ञान-'मति' और 'श्रुत' परोक्ष ज्ञान है, क्योकि इनमे इन्द्रियों तथा मन रूपी माध्यम
Medium आवश्यक होता है। अन्तिम तीन 'अवधि, मन.पर्यव और केवलज्ञान' प्रत्यक्ष ज्ञान कहलाते है, क्योकि किसी भी प्रकार के माध्यम के विना ये ज्ञान स्वय ग्रात्मा को साक्षात्-प्रत्यक्ष-प्राप्त होते है ।
पहले हमने चार प्रमाणो पर विचार करते समय इन्द्रियो के द्वारा तथा मन के द्वारा होने वाले वोध को 'प्रत्यक्ष' प्रमाण बताया था । यहाँ यह बताया गया है कि मति और श्रुत ये दोनो ज्ञान इन्द्रियो की तथा मन की सहायता से होते है । फिर भी यहाँ हम इन्हे 'परोक्ष-ज्ञान' कहते है। यह जो भेदविरोधी कथन-मालूम होता है, उसका कारण यह है कि व्यावहारिक और आध्यात्मिक वातो मे भेद है। इन्द्रियो से होने वाले ज्ञान को हम व्यवहार मे परोक्ष कहने के बदले