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यह तो ठीक नहीं" इस विद्यार्थी मित्र ने एक और तक किया ।
गुरुजनो ने भी
" श्राज बहुत कम लोग इस वात को स्वीकार करेंगे कि आध्यात्मिक और प्राधिभौतिक विषय एक दूसरे से भिन्न नही हैं। दृष्टि भेद के कारण ये दोनो बाते भिन्न-सी विज्ञान का दावा है कि मानव जाति की उसका अस्तित्व है । विश्व के प्रध्यात्मिक मानव जाति की भलाई और कत्याण की भावना का चित्र अपने सामने रखकर ही ये बाते कही है। जो कुछ भी भिन्नता नजर ग्राती है वह तो सिर्फ सुख और कल्याण विपयक कल्पना मे --- समझ मे है | मूल मे तो सुख श्रौर कल्याण दोनो मे अभिन्नता है ।" मैने जवाव दिया ।
प्रतीत होती है । भलाई के लिये
"यदि हम सिर्फ भौतिक प्रश्नो के बारे मे ही सोच-विचार करे तो क्या उसका तरीका आध्यात्मिक विचार धारा से भिन्न न होगा ?” उसने अपना सन्देह प्रकट करते हुए कहा ।
"नही, दोनो एक ही है। फिर भी जहाँ तक भौतिक विपय का सम्वन्ध है, मनुष्य ने अभी तो इस विपय मे कुछ अधिक ज्ञान प्राप्त ही नही किया । जब प्रोफेसर ग्राइन्स्टाइन ने अपना सापेक्षवाद का सिद्धात (Theory of Relativity) प्रयोगशाला मे सिद्ध करके विश्व को बतलाया तब सारा विश्व आश्चर्य मुग्ध हो गया था। लेकिन उनका वह सापेक्षवाद, जैन तत्त्वज्ञान में ठूस-ठूस कर हजारो-लाखो वर्षो से भरा