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२३६ कठिनाई नही है, और हो तो भी वह पोटेशियम सायनायड के समान प्राणघातक नहीं, प्राणोद्धारक है । उसका सपूर्णत. अनुमरण करने की निश्चय दृष्टि को ध्येय रूप में स्थापित करके यदि उसका अशत भी पालन करने का प्रारभ किया जाय तो वह परम आनन्द और परम सुख का साधन बने । यदि हमारे भीतर यह जिज्ञासा जगे तो हमारा कल्याण हो जाय ।
यदि हम सप्तभगी की इन सात जिज्ञासाओ को आत्मा की मुक्ति के साथ अनन्त सुख की प्राप्ति के साथ जोड कर विचार करेगे तो परमपद की प्राप्ति के मार्ग का एक ज्वलन्त चित्र हमारे सम्मुख प्रकट होगा । हम यह वात समझ जाएंगे कि किस प्रकार का जीवन जीने से हम अनन्त सुख के भोक्ता बन सकेगे। ____ अब हम एक भला और सच्चा जीवन जीने को महत्त्व को और आवश्यक बात पर आ पहुँचे है । कुछ लोग पूछते है कि, 'सप्तभगी के बुद्धिप्रयोग से हमने एक वस्तु के सात भिन्नभिन्न स्वरूप तो देखे, परन्तु उससे हमे लाभ क्या हुआ ? यह मान भी ले कि अनेकान्तवाद के तत्त्वज्ञान मे स्याद्वाद नामक प्रमाणभूत पद्धति, नय नामक विलक्षण व्याख्या और सप्तभगी नामक सुन्दर व्याकरण है, पर उससे हमे क्या लाभ ?
उमसे लाभ तो अमूल्य है । उसका वर्णन करने मे पृष्ठो पर पृष्ठ रगे जा सकते है । यहाँ जो प्रश्न पूछा गया है वह आत्मलक्षी न होकर ससारलक्षी है । सासारिक सुखो की प्राप्ति मे सप्तभगी उपयोगी है या नहीं ? रोजाना के जीवन मे उसकी जानकारी से कोई लाभ हो सकता है या नही ? इन प्रश्नो के बुद्धिगम्य उत्तर मांगे जाते हैं । हम सब जानते है कि सुखी