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રરર अपेक्षा भेद से एक ही वस्तु का होना, न होना और अवक्तव्य ( वर्णनातीत ) होना" एक सुन्दर और अद्भुत चित्र है, साथ ही बुद्धि-गम्य भी।
यहाँ हम उपर्युक्त कुएँ और पानी की वात फिर याद करते है। एक कुएँ मे पानी है, दूसरे मे नही है । दोनो की खुदाई एक सी थी। जिस स्तर पर एक मे पानी निकला उसी स्तर पर दूसरे मे नहीं निकला।
अव, जिस जमीन मे ये दो कुएँ खोदे गये है, उसमे अमुक स्तर पर पानी नही है, अमुक स्तर पर पानी है, और एक ही स्तर पर एक कुएँ मे पानी है और दूसरे मे नही है । हम यह वात भी निश्चयपूर्वक कहने की स्थिति मे नही है कि इस जमीन मे दूसरे कुएँ खोदने पर, या जिस कुएँ मे पानी नहीं निकला उसे अधिक गहरा खोदने पर पानी निकलेगा या नहीं ? यदि हम इस सम्पूर्ण परिस्थिति को पूर्णतया व्यक्त करना चाहे, वात जैसी हे बैसी असदिग्धता-पूर्वक कहना चाहे तो हमारे लिए एक ही विकल्प बाकी रहता है और वह यह है कि 'पानी है, पानी नहीं है और कुछ कहा नही जा सकता' ऐसा उत्तर दे। 'क्या इस जमीन में पानी है " इस प्रश्न के उत्तर मे यदि हम कहे कि 'है, नहीं है और अवक्तव्य है' तभी हमारा उत्तर यथार्थ पीर वास्तविक होगा।
यह सप्तम कथन भी 'एव' शब्द के द्वारा निश्चित, तथा 'स्यात्' शब्द के द्वारा अन्य अपेक्षाओ के अधीन है, अत इसे समझने मे कोई कठिनाई नही होगी । वह भी एक सापेक्ष कथन है और इस प्रकार सत्य वचन है ।