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कहता कि 'ब्रह्म कोई वस्तु नही है।' इसी तरह चौथे भाग मे 'अवक्तव्य' शब्द अमुक सापेक्षता का सूचक है और एक स्पष्ट विधान प्रस्तुत करता है |
अर्थात् चौथे भाग द्वारा हमने यह निश्चित किया कि 'घडा तथा फूलदान प्रवक्तव्य है |' तत्त्वज्ञान मे एव व्यवहार मे दोनो में इस चौथे निर्णय का विशेष महत्त्व है ।
हमारी चार प्रकार की जिज्ञासाएँ तृप्त हुईं। परन्तु पाँचवी तो खडी ही है। चलिए, अब हम पचम भग की प्रोर आगे बढे |
कसौटी ५ - स्यादस्त्येव स्यादववतव्यश्चैव घट | इस वाक्य की सधियो का विग्रह करे
स्यात् +अस्ति + एव स्यात् + अवक्तव्य + च + एव घट | इसका अर्थ हुआ, कथचित् घडा है ही, और कथचित् घडा वक्तव्य है ही ।
इस पाँचवे भग मे हमारे सामने एक नई ही - पांचवी - दृष्टि प्रस्तुत होती है । चौथे भग मे हम सापेक्ष दृष्टि से 'अव - क्तव्य' कह कर रुक गये थे । ऐसा कह कर हमने उसके अस्तित्व को अस्वीकार नही किया । यदि ऐसा करे तो 'स्यात्' शब्द निरर्थक हो जाय ।
चौथे भग के द्वारा निर्णय करते समय हमारे सामने तीन कथन थे - (१) है, (२) नही है (३) है और नही है । इन तीनो के उपरान्त वस्तु की और एक स्वतन्त्र खासियत के आधार पर हमने 'अवक्तव्य' द्वारा चौथा स्वतन्त्र कथन किया था । यह चतुर्थ विधान स्पष्ट, बुद्धिगम्य और दिन व दिन के जीवन में प्रयुक्त वाक्य है, यह बात भी हमने स्वीकार
की थी ।