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उनका जवाव सुन कर मे पुन मुसकुराया । बाद मे मैने धीरे से पूछा " यदि मे यह साबित कर दूँ कि यह बात झूठ नही बल्कि सत्य है तो ?"
"
“You ale welcome. " यह साबित कर देने के लिये मैं आपको ग्रामन्त्रित करता हू ।"
"अच्छा तो सुनिये । ग्राप ठहरे संस्कृत के प्रध्यापक । आपका संस्कृत का अध्ययन इतना गहरा है कि किसी से भी आप टक्कर ले सकते हैं लेकिन आपको लेटिन भाषा का ज्ञान विल्कुल नही । आप किसी ऐसे प्रदेश मे जाए जहा की बोल चाल को भाषा लेटिन हो वहाँ खटिया के नीचे पानी होते हुए भी आपको प्यास के मारे तडपना होगा । इस दृष्टि से यदि देखा जाय तो जहाँ तक लेटिन भाषा का सम्बन्ध है. आपको विल्कुल अनपढ और मूर्ख समझा जाय या नही ? ठीक इसी तरह फ्रांसीसी, रूसी, जर्मन आदि भाषाओ के विषय में भी यह बात सही है या नही ?"
मेरी यह बात सुनकर वे सज्जन सोच-विचार मे पड गये, कुछ देर तक सोच-विचार करने के बाद उन्होने जवाव दिया "यदि इस दृष्टि से देखा जाय तो आपकी बात सही है ।"
"हा, तो फिर स्यादवाद को अव आप मिथ्यावाद या प्रपचवाद नही कह सकते है । एक ओर वात सुनिये | आप तो वह के वही है लेकिन एक दृष्टि से देखा जाये तो ग्राप विद्वान् है और दूसरी दृष्टि से लाप