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[ १८४ ] जाता है । ऐसे मामले मे यदि कोर्ट में जाना पडे तो उसे स्वय फरियादी बनना पडता है और सरकारी सुविधात्रो का लाभ उसे नहीं मिलता।
मिल में काम करने वाला कारीगर मिल में कोई दुर्घटना होने से घायल हो जाय या मर जाय तो वहाँ वह बदले (Compensation ) का हकदार होता है। रास्ते पर, मिल से बाहर या अन्य किसी स्थल पर ऐसा होने पर तो मिल के व्यवस्थापको का उससे कोई तअल्लुक नहीं होता।
इन दोनो दृष्टान्तो मे दोनो जने जब कार्यरत थे, क्रिया करते थे तब एवभूत नय ने उन्हे अधिकारी तथा कारीगर स्वीकार किया। यह क्रिया पूरी हो जाने के बाद एवभूत नय की दृष्टि से ये दोनो व्यक्ति अपने मूल नामो के अनुसार 'अर्जुनमिह' और 'जोरु भा' ही रहेगे, अधिकारी या कारीगर नही । ये दोनो दृष्टान्त स्पष्टतया प्रकट करते है कि एवभूत नय इन दोनो को, जब वे कार्य द्वारा दिये गये नामो वाली क्रिया मे रत हो, तभी उन शब्दो ( नामो ) से पहचानता है । ___ समभिरूढ नय की दृष्टि से इन दोनो व्यक्तियो के लिये वे अपनी अपनी क्रिया मे रत न हो तब भी 'अधिकारी' और 'कारीगर' इन शब्दो का प्रयोग हो सकता है । इस प्रकार एवभूत नय समभिरुढ की अपेक्षा अधिक सूक्ष्म अवलोकन करता है और उससे भिन्न अभिप्राय प्रकट करता है ।
इस प्रकार हमने इन सातो नयो का स्वरूप जान लिया। ये सभी नय 'ज्ञेय पदार्थविषयक अध्यवसाय विशेष' माने गये है । अध्यवसाय अर्थात् 'मनोगत समझ' । जो जानने योग्य पदार्थो की मनोगत-समझ-ज्ञान देता है सो 'नय' है । यह हुई