________________
१६५
'स्थापना निक्षेप' होता है । इसके दो भेद है - तदाकार स्थापना और अतदाकार स्थापना |
किसी देव या व्यक्ति की मूर्ति बनाकर हम उसे उस देव या व्यक्ति का नाम देते हैं । यहाँ वस्तु पत्थर होते हुए भी, उसका उस देव या व्यक्ति के समान आकार बना कर, हम उसमे देव या व्यक्ति का श्रारोपण करते है | यह हुई 'तदाकार स्थापना' - ग्राकार बताने वाली स्थापना ।
दूसरी ओर हम शतरज के खेल मे लकडी या प्लास्टिक के मोहरे वना कर उन्हे राजा, वजीर, हाथी, घोडा, आदि नाम देते है | यहाँ उन नामो का हमने लकडी में प्रारोपण किया इसलिए ' स्थापना निक्षेप' किया, परन्तु उन मोहरो मे राजा, वजीर, हाथी, घोडा - आदि का ग्राकार नही होता । इसलिए इसे 'अतदाकार स्थापना' - आकार न होते हुए भी अमुक ग्राकार वाले नामो का श्रारोपण - कहते है ।
नाटक या सिनेमा के पात्र, चित्र, फोटोग्राफ, मूर्ति आदि मे मूल व्यक्ति की जो स्थापना होती है उसे ' तदाकार स्थापना निक्षेप' कहते है | स्मारक शिला, समाधि, ताश के पत्ते, शतरज के मोहरे, इत्यादि मे प्राकृति न होते हुए भी हम व्यक्ति की स्थापना करते है, वह 'प्रतदाकार स्थापना' कहलाती है ।
इस प्रकार हमे यह समझना चाहिए कि जब हम विशेष नाम द्वारा निश्चित को हुई किसी वस्तु या व्यक्ति की स्थापनाआरोपण अन्य किसी वस्तु या व्यक्ति मे करते है तब ' स्थापना निक्षेप' माना जाता है । प्रथम 'नाम निक्षेप'
-'नाम और व्यक्ति' दोनो नाम