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________________ १४१ बनाया कपडा भी भाग या अन्य किसी कारण से-जिसे 'Act of the Government or Providence'-सुल्तानीआसमानी-कहते है-~-व्यर्थ जाता है । इसमे भी यदि भवितव्यता हो तो ही कपडा तैयार होता है । यदि भवितव्यता (नियति) का सहयोग न हो तो उसमे भी अनेक विघ्न प्रात है, काय नहीं बन पाता। जैन तत्त्ववेत्तानो ने एक बहुत सुन्दर दृष्टान्त देकर समझाया है कि ये पाँचो कारण किस प्रकार एक साथ काम करते है। "नियतिवनात् जीव लघुकर्मी वन कर निगोद से बाहर निकलना है, पुण्यकर्म से मनुष्यभव और सद्गुरु का योग आदि सामग्री प्राप्त करता है, भवस्थिति का परिपाक होने पर जीव-वीर्य उल्लसित होता है, भव्य स्वभाव होने पर वह भव्य जोव पुरुषार्थ से तथा कालबल से शिवगति प्राप्त करता है।" यही दृष्टान्त एक अन्य प्रकार से भी प्रस्तुत किया जाता है:-"भवितव्यता के कारण जीव निगोद से बाहर निकलता है, स्वभाव तथा काल के सहयोग से चरमावर्त मे आता है, चरमावर्त मे कर्म के द्वारा उसे धर्म-पुरुषार्थ के लिये आवश्यक पचेन्द्रियत्व आदि सामग्री प्राप्त होती है, और इस सामग्री से युक्त श्रात्मा अव पाँचवे कारण-पुरुषार्थ के द्वारा ही मोक्ष मार्ग की साधना करता है, उस मार्ग पर प्रयाण करता है।" यहाँ नियति अथवा भवितव्यता-रूप एक कारण द्वारा जीव का निगोद मे से बाहर आने का कार्य होता है । वहा से वाहर आने के बाद, मनुष्यभव आदि प्राप्त कराने वाला पुण्यकर्म, सो कर्म नामक दूसरा कारण है। भव स्थिति का
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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