________________
१२६
'ग्राकाश' ये उसके क्षेत्र हुए। इन दोनो मे से मुख्यतया जिम का जिक्र चल रहा हो वह क्षेत्र समझना चाहिए ।
काल - इसमें भी उत्पादन और कार्य का-यो दो प्रकार के काल प्राते हैं । उसे बनाते वक्त जो समय हो वह उसका उत्पादनकाल है, और जब वह गति कर रहा हो तब का समय उसके कार्य का 'काल' है । दोनो मे से मुख्यतया जिसकी वात चल रही हो वह काल लेना चाहिए ।
भाव -- उसका रंग, रूप, ग्राकृति, और कार्य - ये उस विमान के भाव है | सामान्यतया उसका कार्य ग्राकाश मे उड्डुयन करना है इसलिए 'उड्डयन' (ग्राकाश मे उडना) विमान का 'भाव' है ।
जैन तत्त्ववेत्ताओ ने घट (घडा) दृष्टान्त के रूप मे लिया है । उसमे 'मिट्टी' उसका 'द्रव्य' है । जहाँ बनाया या रखा हो वह उसका 'क्षेत्र' है । जव बना या जिस समय रखा हो वह उसका 'काल' है और 'काला या लाल रंग' उसका भाव है ।
अव उपर्युक्त चारो अपेक्षाओ मे एक और महत्त्व की बात समझ लेनी चाहिए । यह बात है इन अपेक्षाओ के 'स्व' और 'पर' इन दो विभागो की । ये 'स्व' तथा 'पर' दो अलग अलग भाव है । इन दोनो शब्दो को हम वरावर समझ ले । सप्तभगी के प्रथम दो पदो मे (प्रथम और द्वितीय भाग मे ) 'है' और 'नही है' इस प्रकार के दो कथन किये गये है । ये कथन 'स्व' और 'पर' की यपेक्षा से किये गये है ।
'स्व' अर्थात् अपना और 'पर' अर्थात् 'अपना नही सो' यानी पराया ।
इस प्रकार जब अपेक्षा को बात करते हैं, तब दो प्रकार