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लाप करते हुए लेखक महोदय की अमाधारण चिन्तनशक्ति की प्रशंसा कर रहा या तव पज्य महाराज श्री ने फरमाया कि सभी उनका लिया हुना म्याटवाद पर एक मुन्दर, निबन्ध प्रकाशित हो रहा है लो तुम ही उनकी प्रस्तावना लिय दो। यापि न्यावाद जमे अतिगहन विषय पर प्रस्तावना लिखने की मुम, में कोई योग्यता न होने हार भी कंवल पूच मुनिवर्य की जाना योगिरोधार्य करता हुआ मने दो गन्द पाठक वृन्द के मामन प्रस्तुत करने का प्रयास किया है मो श्रुटि आदि के लिये लमा याचना आ अनुरोध करना है कि लेखक महोदय ने माध्यय भाव में पर तटस्य दृष्टि से बडे गेचक और तात्यिक शैली न स्यादवाट जम्म मागर को गागर में समावेश करके समझाने का प्रशस्त प्रयत्न किया है उसको उसी मान्यस्य व तटस्य वृत्ति के स्तर पर रेडियो के मीटर की भॉति रह कर इस निबन्ध का अध्ययन, मनन एवं परिशीलन करेंगे तो स्याद्वाद के मत्वामृत का अनुभव हा विना रहेगा नही-"मुन्न पु कि बहुना"।
शिवगज ८-१२-६०
धर्मानुरागी"ऋपम"