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इसी तरह पतीली मे दूध का जो क्षेत्र-रहने का स्थल-है वह पतीली के क्षेत्र से भिन्न है । व्यवहार मे ऐसा कहते है कि 'दूध पतीली मे है' परन्तु वास्तव मे दूध उस पतीली मे नही बल्कि उसके भीतर के रिक्त स्थान (अवकाश) मे है । तात्पर्य यह कि जब हम 'क्षेत्र' शब्द का प्रयोग करते है तव किसी भी दूसरी वस्तु के अाधार से रहित स्थल का क्षेत्र का उल्लेख करते है। इसमे अावश्यकतानुसार अपनी विवेक्बुद्धि का उपयोग करके निर्णय करना चाहिये।
पतीली स्टेनलेस स्टील को हो चाहे पीतल की, उसमे जब हम दूध भरते है तव स्टेनलेस स्टील या पीतल जिस स्थान पर है वही रहता है और दूध भी जहाँ होता है वही-पतीली के भीतर के रिक्त स्थान मे-रहता है । अत दूध को एक स्थान मे रहने का प्राधार भले पतीली ने दिया हो, परन्तु दोनो अपने अपने स्थान मे-क्षेत्र मे--अलग है।
जब हम अाकाश मे उडते हुए किसी पक्षी को देखते है तव आकाश और पक्षी एक ही स्थान पर होते है । आकाश वहा है और पक्षी भी वहा है, परन्तु दोनो का क्षेत्र एक नही है । जैन दार्गनिको के मतानुसार आकाश स्वय ही एक मात्र क्षेत्र है, जब कि बाकी के द्रव्य 'क्षेत्री' है । फिर भी व्यावहारिक ज्ञान के लिए यहाँ हम यह मान कर चलते है कि जिस प्रदेश पर आकाश पाया हुआ हो उस प्रदेश मे उसका क्षेत्र है। उदाहरणार्थ किसी गॉव, शहर या प्रदेश के ऊपर जो आकाश दिखाई देता है, उस 'दृश्यमान आकाश के लिए हम केवल उदाहरण के तौर पर मान लेते है कि अमुक स्थल या प्रदेश के ऊपर का भाग उस आकाश का क्षेत्र है । आकाश एक द्रव्य