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उनमे आये हुए 'काल' द्रव्य का इसमे समावेश नहीं होता, क्योकि काल एक विशिष्ट द्रव्य है। वह एक अविभाज्य वस्तु है, उसके विभाग नहीं हो सकते । हमने दिन, रात,घटे, मिनट, सैकण्ड आदि भाग काल के किये है, परन्तु वस्तुत वे काल के विभाग नहीं है। हमने व्यवहार चलाने के हेतु बुद्धि और कल्पना का सहारा लेकर काल के ऐसे विभाग बनाये है, नीर उन्हे ये सव नाम भी दिये है। प्रात काल, सध्या काल आदि जो काल कहलाते है वे वस्तुत 'काल' नही है, प्रकाश आदि प्रदार्थो का परिणमन मात्र है । काल तो एक नियामक द्रव्य है, अत द्रव्य की अपेक्षा से सबधित विषय मे से हमे काल को अलग ही रखना है । एक स्वतत्र अपेक्षा अर्थात्-आधार के तौर पर इसका विशेप उपयोग है।
पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु, शब्द (आवाज), विचार आदि सब द्रव्य हैं, और इन सव पदार्थों का समावेश 'पुद्गल' द्रव्य में हो जाता है।
किसी भी वस्तु का निर्णय करने के लिए जैन तत्त्ववेत्ताओ ने जो चार आधार बताये है, उनमे से प्रथम अपेक्षा अथवा आधार का विचार करते समय हमे इन सब द्रव्यो (पदार्थो) को अपनी दृष्टि के सम्मुख रखना है । अर्थात् जव भी हम'द्रव्य की अपेक्षा से' ऐसा प्रयोग करे तव जिसके विषय मे बात करते हो उसके आधारभूत द्रव्य को ओर हमारा लक्ष्य होना चाहिए।
उदाहरण स्वरूप कुछ वस्तुएँ लेकर उनमे कौनसा द्रव्य है सो समझ ले।