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इस 'स्यात्' शब्द के प्रयोग मे ही है । यह एक विशिष्टता है । निश्चित प्रयोजन से इस शब्द का प्रयोग किया गया है । केवल प्रयोग के लिये प्रयोग नही, बल्कि अत्यत ग्रावश्यक होने के कारण इस शब्द का प्रयोग किया गया है । यदि इस शब्द का प्रयोग न किया हो तो ताश के पत्तो के महल की तरह अनेकातवाद के तत्त्वज्ञान की इमारत गिर कर धराशायी हो जाय ।
एक छोटा सा दृष्टान्त ले ।
भारत के सुप्रसिद्ध क्रिकेटर श्री जमु पटेल को कानपुर टैस्ट मैच मे आस्ट्रेलियन टेस्ट टीम के सामने सुन्दर वोलिग करके भारतीय टीम को विजय दिलाने के उनके कार्य से प्रसन्न होकर उनकी इज्जत करने के लिये भारत सरकार ने 'पद्मश्री' की उपाधि प्रदान की है । भारत सरकार की ओर से ग्रन्य किसी वोलर को ऐसा सम्मान प्राप्त नही हुआ । सरकार के इस कार्य से यदि कोई यह निष्कर्ष निकाले कि 'श्री जसु पटेल भारत के सर्वश्रेष्ठ बोलर है ।' तो यह निष्कर्ष कैसा कहलाएगा उन्होंने कानपुर मे जैसी सुन्दर बोलिंग की थी वैसी ही श्रेष्ठ वोलिंग प्रत्येक मैदान मे करना उनके लिए या उनके स्थान पर अन्य किसी वोलर के लिए सभव नही है । अन्य स्थानो पर सुन्दर बोलिंग करने वाले अन्य वोलर भी थे । तिस पर भी भारत सरकार ने श्री जसु पटेल को सम्मान दिया । इस पर विचार करने पर ज्ञात होगा कि केवल सुन्दर बोलिंग के कारण उन्हे चन्द्रक नही दिया गया, उस स्थान पर उनकी बोलिंग के कारण भारतीय टीम की जीत हुई, उस जीत को लक्ष्य मे लेकर ही उन्हें 'पद्मश्री' का खिताव दिया गया है । इससे स्पष्ट
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