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काल की अपेक्षा से उसी को हम बालक, किशोर, युवा, अधेड और वृद्ध कहते है। इस तरह मनुष्य का देह, वह का वही होने के बावजूद वस्तु की दृष्टि से एक होते हुए भी, द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव की भिन्न-भिन्न अपेक्षा से भिन्न-भिन्न नजर आता है, अलग-अलग बन जाता है। न केवल हम हो, सभी लोग इस बात को स्वीकार करते है। ___इन बातो से यह सिद्ध होता है कि किसी भी पदार्थ मे परस्पर विरोधी गुणधर्मो का अस्तित्व तो होता ही है इसमे कोई सन्देह नही । इस बात को स्वीकार करने मे अव किसी प्रकार को अस्पष्टता न रहेगी, कुछ कठिनाई न होगी। अनेकान्तवाद का आश्रय लेकर जैन दार्गनिको ने ऐसी. वहुत-सी बाते बहुत ही स्पष्टता से समझाने की कोशिश की है। __ आधुनिक मनोवैज्ञानिको का यह कहना है कि प्रत्येक मनुष्य मे 'डॉक्टर जेकिल और मिस्टर हाइड की तरह' परस्पर विरोधी वृत्तियाँ, जिनके बीच उत्तर ध्रुव और दक्षिण-ध्रुव के समान अन्तर है, होती ही है। इसलिये किसी भी ससारी मनुष्य को सर्वथा भला अथवा सर्वथा बुरा-हम कह ही नहीं सकते।' ___एक सज्जन ने अपने नाम से एक सार्वजनिक प्रौपधालय बनाने के लिये डेढ लाख रुपया दान दिया। लेकिन अपने ही एक नौकर को, जिसे ऑपरेशन करवाने के लिये पाँच सौ रुपयो की खास जरूरत थी, उन्होने पैसे देने से साफ-साफ इन्कार कर दिया। नतीजा यह हुआ कि आवश्यक इलाज