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रूपमें वाठापातु वंशमें भी बणित किया गया है। __गुहशिवके धर्मातर ग्रहणसे विचलित होकर.पांडु राजाने उन्हें अपनी राजधानी पाटलीपुत्र को बुद्धदंतको साथ लिये चले पाने के लिए मादेश दिया। पाटलीपुत्र में दंतधातुको नष्ट कर देने के लिए बहुत कोशिश करने पर भी वे सफल काम न हो सके। और बादको दत की अद्भत शक्ति देखकर खुद भी बोट हो गये। बादको इस दंतपर अधिकार करने के लिये कलिंग के पड़ोसियों ने कलिंग पर धावा किया था। इन पाक्रमणकारियों में क्षीरधार प्रधान थे । इस क्षीरवार को श्री युक्त सुशील. चन्द्रने वाकटाक राजा और प्रवरसेन भन्दाज किया है ।
युद्ध में गुहशिवने प्राणत्याग किया परन्तु मृत्युके पूर्व ही उन्होने अपनी कन्या हेममाला और दामाद दतकुमार के हाथों बुद्ध दंतको सिंहल भेज दिया था। जब हेममाला मोर दतकुमार सिंहल पहुंचे तो उस समय वहां के राजा महादिसेन थे। इनके राजत्व कालका समय ई० २७० से ३०४ तक होता है । सुतरां कलिंगमें गुहशिव का तीसरी शताब्दीमें राजत्व करना सुनिश्चित है।
मध्य युग यह तो प्राचीन युग का विवरण है। अब देखना है कि मध्य युगीय उडीसामें जैन धर्मकी हालत कैसी थी? कलिंगमें मुरंड शासनके अवसान के बाद गुप्तवश का प्राधिपत्य होना ऐतिहासिक प्रगट करते है । गुप्त राजवंशका राजनैतिक प्रभाव समुद्रगुप्त की दिविजय के बाद से पडना सुनिश्चित है । इस राजनैतिक प्रभावके साथ सांस्कृतिक प्रभाव भी अप्रतिहत भाव 16.0. H. R. . Vol. III, No. 2. P. 104 १७- वाकटक एण्ड गुप्त एज, सं० प्राल्टेकर और डगमायुमदार
इत-प्र. सीलोन'१० १५१-२६१
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