SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ड्र " I * 3m ५. खारवेल का शासन और साम्राज्य । AV --- → 14 जीवि खारवेलके जीवन वृतान्तका एकमात्र प्राचार उनका सुवया हुमा हाथीगुफाका शिलालेख है । उसीके प्राधार से ज्ञात होता हैं कि खारवेल एक महान तेजस्वी और प्रतापी राजा में बलवान होनेके साथ वह देखने में बहुत ही सुन्दर थे। शिलालेखमें उनके शासनकालकी घटनाओंका वर्णन मिलता है। उनसे पता चलता है कि खारवेल सोलह वर्ष की आयु में युवराज पद में अभिषिक्त हुए। उस समय वे विद्या अध्ययन समाप्त कर चुके थे। सोलह वर्ष की उम्र में उनके शरीर की गठन इतनी सुन्दर लगती यो कि उससे भविष्य में उनके वीर योद्धा होने का परिचय मिलता था । इससे पता चलता है कि वे प्रात्मसयमी प्रौर सच्चरित्र थे । चाणक्य के अर्थशास्त्रानुसार उस समय के राजाओ की प्रात्मसयमी एवं सच्चरित्र होता चाहिये था । ' खारवेल २४ वर्षको धायुमें कलिंगके सिंहासन पर सुशोभित हुआ। पौर सिर्फ तेरह वर्ष ही राजस्व किया। इस अल्प समय में कलियके उत्तर और दक्षिण में जिसने राज्य में सभोको उसने १ विद्या विनीत राजा ही प्रवान् दिनरत प्रयाग प्रथविन भूमते स्वभूतहितरत: K. A. 2 History of Orissa Dr.H. K. Mahatab and Early History of India, N. N. Ghosh. *
SR No.010143
Book TitleUdisa me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Shah
PublisherAkhil Vishwa Jain Mission
Publication Year1959
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy