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खारवेल के हाथीगुफा शिलालेख कापिथुड है।'
खारवेल के हाथींगुफा शिलालेख में यह भी लिखा गया है कि खारवेल से बहुत पहले कलिंगके राजमोके द्वारा अध्युसिंत पिथुड नामक एक जैनक्षेत्र था। __इस मालोचनासे स्पष्ट सूचित होता है कि भ० पार्श्वनाथ के समय कलिगमें जैनधर्मका प्रभाव पड़ा था और भ० महावीर के समय अर्थात् ई०पू०६वी सदीमे इस धर्मके द्वारा कलिंग विशेष रूपसे अनुप्राणित हुआ था । ई०पू०४ थी सदी मे महापद्म नन्द ने कलिंग पर आक्रमण किया था। वह कलिंग विजय के प्रतीक रूप बहुकाल से जातीय देवता के रूपमे पूजित होने वाली कलिंग जिन प्रतिमा को अपनी राजधानी राजगह को ले प्रायें थे। यह विषय न केवल पुराणो में दिखाई देता बल्कि खारवेल के हाथीगुफा शिलालेख मे भी इसका स्पष्ट उल्लेख है । इस लिये ईस्वी पू० ४ थी सदीमें भी कलिंगमे जैन धर्म राष्ट्रीय धर्म के रूपमे प्रतिष्ठिन था ऐसा नि सदेह कहा जा सकता है।
ईस्वी पू० ३री सदी मे कलिंग के ऊपर एक अकथनीय विपत् प्रायी । मगध के सम्राट अशोक ने कलिंग के खिलाफ युद्ध की घोषणा की और कलिंग को छार खार कर डाला । ____ इस युद्ध में कॉलंग के एक लाख मादमी मारे गये, डेढलाख वन्दी हुए और वहृत लोग युद्धोत्तर दुर्विपाक में प्राणो से हाथ धो बैठे। मेरा दृढ विश्वास है कि कलिंग के जिस राजा ने अशोककै साथ युद्ध चलाया था वह एक जैन राजा था। अशोक ने अपने १३वीं अनुशासनमे गंभीर अनुशोचना के साथ स्वीकार किया है कि कलिग युद्ध में ब्राह्मण तथा श्रमण उभय संप्रदाय के लोगो ने दुख मोगा था । अशोक ने जिनको श्रमण कहां हैं 7- I. A. 1958 Page 145
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