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नै नहीं की है। फिर भी प्रश्न उठता है कि बौद्धधर्मने तो धर्मके नामसे युद्ध नही किया है, फिर वह कैसे भारत के बाहर चीन जापान मादि सुदूर देशों में प्रचरित हो सका ? मैं सोचता हूँ कि जैनधर्मकी नीरस कठोरता और निष्ठाने उसको जनसाधारण में लोकप्रिय नही कर पाया। बौदधर्म अपने मध्यम पन्ध (के कारण) यानी नातिकठोर पोर नाति विलासपूर्ण जीवन यात्रा के कारण अधिक लोकादरणीय हो सका था। जैनधर्म में तोर्थंकरो के सुकठोर प्रादर्श ने लोगो को विमुग्ध किया सही लेकिन उससे लोग सदा के लिये अनुप्राणित हो नहीं सके । ___ जनलोग भारत के बाहर अन्य किसी देश में परिदृष्ट न होते हुए भी भारतके काठियावाड,राजस्थान पोर उत्कल मादि प्रान्तो में प्राजतक दिखाई देते हैं। उडीसा के अनेक प्रान्तों में यथा पुरीकी प्राची नदीकी भववाहिका तथा पाठगड,में तिगि. रिमा नमापाटण मादि स्थानों में 'मी जैन बसवास करते है। सिंहभूम में सराक के नाम एक जाति के लोग रहते है । महा महोपाध्याय हरप्रसाद शास्त्रीने इन लोगो को बौद्ध कहा है लेकिन मेरा दृढ मत है कि वे जैन है। __मयूरभज भोर केस्बुकर जिला के जिस जिस स्थानमे जैन धर्मके प्राचीन अवशेष और निवर्शन मिले है वहा सराकपोखरियां मौजूद है । इन सब पोखरियोको सराक जातिके लोगो ने खुद वाया था। सराक लोग शाकाहारी होते है । उनकी प्राचार
* जैनाचार भी सभी वर्गके लोगोके लिये उपयुक्त है और एक समय बह भारतेतर देशों में व्याप्त था, किन्तु संगठन के प्रभाव में विदेशोमें बौद्ध धर्म ने उसका स्थान ले लिया। अफ्रीका सिंगापुर आदि देशों में आज भी जनी है । -का० प्र (8) H.P. Sastri's Introducton to Neo.Budhism in Orissa by N.N Basu,