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मौर्य युग में जो सब जेऩ स्थापत्य और भास्कर्य के रूपायन देखने को मिलते हैं, उनमें से बिहार के बराबर और नागार्जुन पहाड़ में बनी हुई कई गुफायें (गुहा) उल्लेखनीय है । ऐतिहासिको ने प्रमाणित किया है कि इन गुफाओंों को तत्कालीन मौर्य राजानो ने खुदवाया था । उनके समय में और कई जैन मन्दिर तेयार हुए थे ।
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सुद्ध युग मे जैनकीर्ति रहने वाले उल्लेख योग्य स्थानो मे ओडिसा की खडगिरि गुफा और उदयगिरि गुफा सर्व प्रधान हैं । चेदिवशज खारवेल के अनुशासन प्रशस्ति यहा खोदित हुई हैं । खीष्ट पूर्व पहली मती में यह अनुशासन खोदित होने की बात, खोदित लिपि से प्रमाणित हैं । सम्राट खारतेल नन्दराजा द्वारा अपहृत 'जैन' मूर्तिको मगध अधिकार करके फिर ले प्राए थे । राजा खुद तीर्थकरो के प्रति अनुरक्त रहने से बे और उनकी रानी दोनो ने खुशी के साथ इन सन्यासियो के विश्राम के लिए खडगिरि की गुफाये खोदित कराई थीं । इस गुफा की निर्माण रीति चंत्य निर्माण रीति से अलग है छोटे छोटे चैत्य मे रहने वाले विशाल कक्ष ( Hall ) यहाँ देखने को नही मिलता । हाथी गुफा में खोदे हुए एव मंचपुरी गुफा के नीचे के महल मे होने वाले भास्कर्यं दुसरी जगह होने बाले स्वल्प स्फीति भास्कर्य से कुछ अनुन्नत होने पर भी उसको स्वाधीन गति और रचना की ओर से यह वरदूत भास्कर्य से अधिक दृढता ( Force ) के साथ खोदा हुम्रा है, यह अच्छी तरह जान पड़ता है ।
ई ० ० पू० पहली शताब्दी तक अनत गुफा, रानी गुफा श्रौर गणेश गुफाओ को भास्कर्य मे जैन धर्म की सूचना उल्लेख योग्य है । प्रनन्त गुफा में चार घोड़ े लगे हुए गाडी में जो मूर्ति देखने को मिलती है भौर जिसे सूर्य देव नाम से पुकारते
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