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को किया में लीन महातत्वज्ञानी, बायो आचार्य द्वारा प्रबस यह मासीन पाध्याय का ख्याल हो और गमो लोए सम्बसारण बोलने पर भट्ठाइस मूलगुणों से पूर्ण शुद्ध उपयोग में विशेष रूप से लगे साधुओं का ध्यान हो। इन परमेष्ठियों के स्मरण और नमस्कारपूर्वक कार्योत्सर्ग करने से आत्मा का आत्मीय सम्बन्ध चैतन्य भावो की सन्निकटता का सम्बन्ध प्रकरण रूप में हो जाता है। पर परमेष्ठियों का सचित्रण हृदय में कर लेंगे और बाहर के काम की ममता का उत्सर्ग कर देंगे तो वास्तविक ध्यान करने की क्षमता प्राप्त होगी और वह ध्यान चंतन्य को स्पर्श करने लगेगा । पाच परमेष्ठियो के स्वरूप मे जो तन्मय हो जाते हैं उन्हे तो आत्मरूप परमात्मपद को प्राप्ति होती है।
मन्त्र का जाप कितनी सल्या में हो, कितने समय तक हो, इसका ख्याल न रखें और अधिक-से-अधिक एकाग्रता और निर्मलता पूर्वक जाप करें इस शैली से मन्त्र जाप द्वारा एक अपूर्व आनन्द आयेगा ।मानसिक आप श्रेष्ठ होता है। जिसमें मन में ही मन्त्र का चिन्तन किया जाता है। होठ भी नहीं हिलते। __ 'महामन्त्र णमोकार एक वैज्ञानिक अन्वेषण' एक उपयोगी कृति है। इसके लिए लेखक और प्रकाशक बधाई के पात्र हैं। केलादेवी सुमतिप्रमाद ट्रस्ट जिनवाणी के प्रचार-प्रसार में सक्रिय है, यह प्रशसनीय है। सम्मेवशिखरजी, मधुवन (विहार)
-आचार्य विमल सागर 8-10-93