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मन्त्र बोर मातृकाए 53
यह कहा जा चुका है कि 'अ' से लेकर 'ह' तक में सभी वर्णों का समावेश हो जाता है अतः अह को सभी वर्णों का सक्षिप्त रूप कहा जा सकता है । 'र' सक्रिय शक्ति का बीज है। इस प्रकार अहं में मातृकाओं की सभी शक्तियों का समावेश हो जाता है । 'अर्ह' यह शब्द ज्ञान का ध्वनि का - सरस्वती देवी का बीज है-आधार है ।
अर्ह के उच्चारण का मुख्य प्रयोजन है सुषुम्ना को स्पदित करना । इसमे 'अ' चन्द्रशक्ति का बीज है । 'ह' सूर्य शक्ति का और 'र' अग्नि शक्ति का बीज है। ये वर्ण क्रमश इडा सुषुम्ना और निगला को प्रभावित करते हैं । इस प्रभाव से कुडलिनी जागृत होती है और वह ऊर्ध्व गगन के लिए तैयार होती है। इसी प्रकार ही के उच्चारण से विश्लेषण करने पर उक्त निष्कर्ष प्राप्त होता है ।
प्रत्येक मातृका (वर्ण) विशिष्ट तत्त्व, विशिष्ट चक्र, विशिष्ट आकृति, विशिष्ट नाडी और विशिष्ट रंग से सम्बन्धित होने के कारण विशिष्ट शक्ति को उत्पन्न करता है। वह विशिष्ट बल का प्रतिनिधित्व करता है । यह शक्ति मानव के बाह्य जगत् को जिस प्रकार प्रभावित करती है उसी प्रकार अन्तर्जगत को । योग शास्त्र मे प्रत्येक वर्ण का विशिष्ट शक्ति का वर्णन किया गया है। ये बीजाक्षर हैं अत. इनका व्यापक अर्थ एव मात्रा तो बीजकोश एव व्याकरण द्वारा हो पूर्णतया ममझा जा सकता है । सत रूप में यहां प्रस्तुत है
अ
-अव्यय, व्यापक, ज्ञानात्मक, आत्मैत्य द्योतक, शक्ति बीज प्रणवबीज का जनक ।
-
आ -अव्यय, कामनापूरक, शक्ति बीज का जनक, समृद्धि, कीर्ति
दायक ।
इ - गतिदायक, सक्ष्मी प्राप्ति में सहायक, अग्नि बीज, मार्दवयुक्त । ई - अमृत बीज का आधार, कार्य साधक, ज्ञानवर्द्धक, स्तम्भन, मोहन, जुम्मन में महायक ।
उ-उच्चाटन एवं मोहन का आधार, शक्तिदायक, मारक (प्लुत उच्चारण के साथ)
ऊ - उच्चाटक, मोहात्मक, ध्वसक ऋ - ऋद्धिदायक, सिद्धिदायक, शुभ ।