________________
46 / महामन्त्र णमोकार एक वैज्ञानिक अन्वेषण
शब्द सुनते ही - अर्जुन का अर्थ चैतन्य प्रबुद्ध हुआ - अर्जुन ने तुरन्त चाण से पृथ्वी छेद डाली और पानी की धारा धरा पर आ गयी । पितामह ने तृप्त होकर पानी पिया और प्राण त्याग दिये। इस बात को अर्जन ही समझ सका ।
इन वर्णात्मक मातृकाओ मे लौकिक एव पारलौकिक अनन्त फल देने की अपार शक्ति है । जब ये मातृकाए मन्त्रों से परिणत हो जाती है तो वह शक्ति अणुबम की भाति इनमे संगठित हो जाती है यह शक्ति होते हुए भी अज्ञानी और कुपात्र को लाभ नही पहुचाती है क्योकि उसकी इसके बोध एव विधि से परिचय ही नही होता है । उदाहरणार्थ एक जगली व्यक्ति को यदि लाखो रुपयो की कीमत का हीरा प्राप्त भी हो जाए तो वह तो उसे एक काच का टुकड़ा ही समझेगा । हमारे धार्मिक भाई-बहिनो मे भी विश्वास और बोध की कमी होने के कारण उन्हे मातृकाममन्त्रा का लाभ नहीं होता । मातृका-शक्ति (अर्थात् वर्णात्मक) के विषय में यह कथन ध्यातव्य है -
मन्त्राणा मातृभूता च मातृका परमेश्वरी ।" - यज्ञ वैभव, अध्याय 4 "ज्ञानस्यैव द्विरूपस्य परापर विमदमः ।
स्यादधिष्ठानमाधार. शक्ति रेकंव मातृका ।" - शिवसूत्रवार्तिक- 23 मातृका वर्ण कर्म :
1 अ, आ, इ, ई, उ, ऊ ऋ ऋ, लृ, लृ, ए, ऐ, ओ, औ, अ, अ
2 क, ख, ग, घ, ङ
3 च, छ, ज, झ, ञ
4 ट, ठ, ड, ढ, ण
5 त, थ, द, ध, न म
6 प, फ, ब, भ,
7 य, र, ल, व
8 श, ष, स, ह, क्ष
(16)
(5)
(5)
(5)
(5)
(5)
(4)
(5)
50
समस्त मातृतकाओ की शक्ति, रग, देवता, तत्त्व तथा राशि आदि पर अनेक प्राचीन जैन एव इतर ग्रन्थो मे गम्भीरतापूर्वक विचार किया गया है । केवल इन पर ही एक विशाल ग्रन्थ लिखा जा सकता है। व्याकरण और बीजकोशो मे इनका समग्र विवेचन है ही । यहा पाठको की जानकारी के लिए मातृका-सार-चित्र प्रस्तुत किया जा रहा है
---