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32 / महामन्त्र णमोकार एक वैज्ञानिक अन्वषण गया है। समस्त संवाद वहा इकटठा हो जाता है और उसे चन्द्रमा तक भेज दिया जाता है, फिर वहा से अलग-अलग स्थानो को सवाद भेजे जाते है । इसका आशय यह है कि हम जो शब्द बोलते है उनको पकड़ा जा सकता है, पुन प्रस्तुत किया जा सकता है। उनको गन्तव्य तक पहुचाया जा सकता है। परन्तु विश्व भर की सभी ध्वनिया आकाशतरंगों मे मिलकर कही भटक गयी है-वे अब भी है और उन्हे पकडा जा सकता है। यह भी सम्भव है कि आकाश मे बिखरी हुई अरिहन्तो और तीर्थकरो की वाणी भी एक दिन विज्ञान की सहायता से हम सुन सके। इसी धरातल पर अध्यात्म शक्ति की अति विकसित अवस्था मे हम मन्त्र के (बेतार के तार) के माध्यम से अरिहन्तो और तीर्थकर। का साक्षात्कार भी कर सकते है। एक दिव्य कर्ण भी विकमित कर सकते है जिससे दिव्य ध्वनि को सुना जा सके। वाणी या भाषा के जो चार स्तर है (बैखरी, मध्यमा, पश्यन्ती और परा) वे भी मन्त्र विज्ञान की ध्वनिमूलकता का समर्थन करते है। भापा अपनी भावात्मकता से जन्म लेकर स्थूल शब्दो मे ढलती है और फिर धीरे-धीरे अन्तत उनी भावात्मकता मे लीन हो जाती है। ___मन्त्र विज्ञान में शब्द की महत्ता को हम समझ रहे है। आखिर ये शब्द, यह भाषा न जाने कितने स्रोतो से बने हैं, यह ठीक है। किन्त जो मूलभूत बीज शब्द एव वर्ण है ये तो वस्तक्रिया से ही जन्मे है। अर्थात वास्तव मे जब तक हमारा आशय (विचार या भाव) शब्द या ध्वनि मे ढलकर आकार ग्रहण नहीं करता तब तक हम उसे अव्यक्त भाषा कह सकते है। अत. स्पष्ट है कि भाषा या ध्वनि का हमारे मल मानम से सीधा-भीतरी और गहरा सम्बन्ध है।
किमी भी द्रव्य की ऊर्जा को पकडने के लिए और दूसरो तक पहुचाने के लिए, हमे उस वस्तु मे विद्यमान विद्युत-क्रम को समझना होगा । देखना होगा कि उससे किस प्रकार की क्रिया-तरगे बह रही है। इसके लिए प्राचीन ऋषियो ने एक विधि निकाली। उन्होने अग्नि को जलते हुए देखा । अग्नि की तीव्र लौ से 'र' ध्वनि का उन्होने साक्षात्कार एव श्रवण किया। वे इस निष्कर्ष पर पहचे कि अग्नि से 'र' ध्वनि उत्पन्न होती है और 'र' से अग्नि उत्पन्न की जा सकती है। बस 'र' अग्नि बीज के रूप मे मान्य हो गया। इसी प्रकार पृथ्वी की स्थूलता