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________________ णमोकार मन्त्र के विषय मे यह प्रसिद्धि है कि इसका आठ करोड, आठ लाख आठ हजार, आठ सौ आठ बार जप करने से जीव को तीसरे भव में परम सुखधाम मोक्ष की प्राप्ति होती है। पर कम-से-कम प्रतिदिन एक माला तो अवश्य ही हर किसी को जपनी चाहिए। जैन साधना पद्धति मे दो प्रकार के स्तोत्र विशेष प्रसिद्ध है एक वज्रपजर स्तोत्र, दूसरा जिनपजर स्तोत्र । वज्रपजर स्तोत्र मे णमोकार मन्त्र के पदो का अपने अगो पर न्यास किया जाता है और उनके व्रजमय बनाने की भावना की जाती है। जिनपजर स्तोत्र मे चौबीस तीर्थ करो का अग न्यास किया जाता है । आत्मरक्षा वज्रपञ्जर स्तोत्र ॐ परमेष्ठिनमस्कार सार नवपदात्मकम् । मात्मरक्षाकर बग-पञ्चराभ स्मराम्यहम् ॥1॥ ॐ नमो अरहताण शिरस्कं शिरसि स्थितम् । ॐ नमो सम्वसिद्धाण, मुखे मुखपट वरम् ॥2॥ ॐ नमो आयरियाण अंगरक्षाऽति शापिनी। ॐ नमो उवज्मायाणं, आयुध हस्तयोरहठम् ॥3॥ ॐ नमो लोए सम्वसाहूण, मोचके पादयो शुभे। एसो पंचनम् कारो, शिला बनमयोतले ॥4॥ सम्मपाप-प्पणासणो, बनो वज्रमयो बहिः। मगलाणं च सवसि, सादिराङगारखातिका 151 स्वाहान्त च पद जेय, पढम हवा मंगल। वोपरि वनमय, पिधान देहरक्षणे ॥6॥ महाप्रमावा रक्षय, क्षुद्रोपद्रव-नाशिनी। परमेष्ठिपदोभूता, कथितापूर्वसूरिभि ॥7॥ पश्चवं कुरुते रक्षा, परमेष्ठि-प सवा । तस्य न स्याद् भय व्याधिराधिश्चापि कदाचन ॥8॥ जिनपञ्जर स्तोत्र ॐ ह्रीं श्री अहं अहंदभ्यो नमो नमः। ॐ ह्रीं श्रीं महं सिसभ्यो नमो नमः ॥1॥ ॐ ह्रीं श्रीं अहं भावार्यभ्यो नमो नमः। ॐ ह्रीं श्रीं महं उपाध्यायेभ्यो नमो नम ॥2॥ ॐ हीं श्रीं अहं श्री गौतमस्वामी प्रमुख सर्वसाधुम्यो नमो नमः । एष पंच नमस्कारः सर्वपापक्षयंकरः।
SR No.010134
Book TitleNavkar Mahamantra Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain, Kusum Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year1993
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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