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मोकार मन्त्र का माहात्म्य एव प्रभाव / 145
त्वमेव अम ।
रक्ष जिनेश्वर ||8||
शरण
नास्ति
अन्यथा तस्मात् कारुण्य भावेन रक्ष
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वदो पाचों परम गुरु सुर गुरु वन्दन जास । विधन हरन मगल करन, पूरन परम प्रकाश ॥१॥
उक्त पद्यो का मथितार्थ यह है
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पच नमस्कार महामन्त्र का स्मरण अथवा पाठ करने वाला श्रद्धालु भक्त पवित्र हा अपवित्र हो, सोता हो, जागता हो, उचित आमन मे हो, न हो फिर भी वह शरीर और मन के (बाहरी-भीतरी) सभी पापो से मुक्त हो जाता है। उसका शरीर और मन अद्भुत पवित्रता से भर जाता है। मानव का यह शरीर लाख प्रयत्न करने पर
सदा अनेक रूप मे अपवित्र रहता ही है, प्रयत्न यह होना चाहिए. कि हमारी ओर से पवित्रता के प्रति सावधान रहा जाए। इस शरीर से भी हजार गुना मन चचल होता है और पाप प्रवृत्ति में लीन रहकर अपवित्र रहता है । केवल णमोकार मन्त्र की पवित्रतम शरण ही इस जीव को शरीर और मन की पवित्रता प्रदान करती है । यह मन्त्र किसी भी अन्य मन्त्र या शक्ति से पराजित नही हो सकता, बल्कि सभी मन्त्र इसके अधीन हैं। यह मन्त्र समस्त विघ्नो का विनाशक है। समस्त मंगलो मे प्रथम मंगल के रूप मे सर्व स्वीकृत है । महत्ता और कालक्रम से इसकी प्रथमता सुनिश्चित है । इस मन्त्र के प्रभाव से विघ्नों का दल, शाकिनी, डाकिनी, भूत सर्प विष आदि का भय क्षण भर में प्रलय को प्राप्त हो जाता है।
यह मन्त्र समस्त संसार का सार है। त्रैलोक्य मे अनुपम है अर समस्त पापो का नाशक है। विषम विष को हरने वाला और कर्मों का निर्मूलक है। यह मन्त्र कोई जादू टोना या चमत्कार नही है, परन्तु इसका प्रभाव निश्चित रूप से चमत्कारी होता है। प्रभाव की तीव्रता और अनुपमता से भक्त आश्चर्यचक्ति होकर रह जाता है। यह मन्त्र समस्त सिद्धियो का प्रदाता मुक्ति सुख का दाता है, यह मन्त्र साक्षात् केवलज्ञान है। विधिपूर्वक और भाव सहित इसका जाप या स्मरण करने से सभी प्रकार की लौकिक-अलौकिक सिद्धिया प्राप्त होती हैं ।