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136 / महामन्त्र णमोकार : एक वैज्ञानिक अन्बेबल
-पंजन मातृकाएं
ट ठ ड ढ ण त थ द ध न, शष, स, ह
ध्वनि सिद्धान्त के अनुसार उच्चारण स्थान की एकता के कारण कोई भी वर्गाक्षर वर्ग का प्रतिनिधित्व कर सकता है । णमोकार मन्त्र में व्यजन मातृकाओ को समझने मे इस सिद्धान्त का ध्यान रखना है।
पुनरक्त व्यजनो के बाद कुल व्यजन मन्त्र मे है
च छ ज झ
क ख ग घ ड्, प फ ब भ म य र ल व,
ण् + म् + र् + ह् + त् + स् +य+ र् + ल् + व् + ज् + इ + ह्, उक्त व्यजन ध्वनियों को वर्ण मातृकाओ मे इस प्रकार घटित किया जा सकता है
घ - कवर्ग, ज - चवर्ग, ण् टवर्ग, ध=तवर्ग, म=पवर्ग, य, र,
1=1
ल, व, स श, ष, स, ह ।
अत णमोकार महामन्त्र मे समस्त स्वर एव व्यजन मातृका ध्वनिया विद्यमान है
मन्त्र सूत्रात्मक ही होते है । अत मातृका ध्वनियों को साकेतिक एव प्रतीकात्मक पद्धति मे ही ग्रहण किया जा सकता है। सकेत अवश्य ही व्याकरण एव भाषा विज्ञान सम्मत होना चाहिए। डॉ० नेमीचन्द्र शास्त्री जी ने उक्त विश्लेषण क्रम अपनाया है। इस विश्लेषण में उनके क्रम से सहायता ली गयी है । क्ष, त्र, ज्ञ ये तीन स्वतन्त्र व्यजन नही हैं,
सयुक्त है। इन्हे इसीलिए मातृकाओ मे सम्मिलित नही किया गया है । सयुक्त रूप से अशान्वय से इन्हें भी क्, त्, ज् के रूप मे उक्त मन्त्र मे स्थान है ही ।
विभिन्न नाम
इस महामन्त्र को भक्ति, श्रद्धा और तर्क के आधार पर अनेक नाम दिए गए है। इनमे णमोकार मन्त्र, पच नमस्कार मन्त्र, पत्र परमेष्ठी मन्त्र, महामन्त्र और नवकार मन्त्र | नवकार मन्त्र को छोड़कर अन्य नामो मे नाम मात्र का ही अन्तर है बाकी तो मूल मन्त्र वही है जिसमें "पच परमेष्ठियो को नमस्कार किया गया है ।